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असम में 2000 से ज्यादा बंगाली मुस्लिम परिवारों पर बुलडोज़र, बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान शुरू

असम सरकार ने मंगलवार को गोलाघाट जिले में अपनी सबसे बड़ी और हाई-प्रोफाइल बेदखली अभियान शुरू किया। यह कार्रवाई मुख्य रूप से बंगाली मुस्लिम परिवारों के खिलाफ है, जिनकी संख्या 2000 से अधिक बताई जा रही है। अधिकारियों के अनुसार, रेंगमा रिज़र्व फॉरेस्ट के उरियामघाट इलाके में करीब 15,000 बीघा (लगभग 4,900 एकड़) जमीन खाली कराई जाएगी, जहां करीब 2,700 परिवार लंबे समय से रह रहे थे।

अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई दो चरणों में होगी। पहले चरण में 2,000 परिवारों पर असर पड़ेगा। इलाके को नौ ब्लॉकों में बांटा गया है और सात दिन पहले ही नोटिस जारी कर दिया गया था। इस अभियान के लिए 1,500 से अधिक पुलिसकर्मी, कमांडो और वन विभाग के कर्मचारी तैनात किए गए हैं।

यह कार्रवाई असम में हाल के महीनों में की गई कई ऐसी बेदखली घटनाओं में से एक है, जो मुख्य रूप से बंगाली मुस्लिम समुदाय को प्रभावित कर रही हैं। सरकार का कहना है कि यह कदम “जनसांख्यिकीय अतिक्रमण” रोकने और जंगलों को बचाने के लिए उठाया गया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का दावा है कि बाहरी लोगों ने बड़े पैमाने पर जंगल की जमीन पर कब्जा कर सुपारी की खेती शुरू कर दी है।

हालांकि, यह अभियान विवादों में है क्योंकि इसे एक खास समुदाय को निशाना बनाने के रूप में देखा जा रहा है। स्थानीय विधायक बिस्वजीत फुकन ने दावा किया कि “90% लोग पहले ही अपना सामान समेटकर चले गए हैं।” उन्होंने बताया कि 42 मणिपुरी मुस्लिम और 92 नेपाली परिवारों को भी हटने का आदेश दिया गया है, जबकि 150 बोडो परिवारों को वन अधिकार कानून 2006 के तहत सुरक्षा मिली हुई है।

इससे पहले भी जून और जुलाई में पांच अलग-अलग बेदखली अभियानों में 3,500 से ज्यादा परिवारों को उनके घरों से बेदखल किया गया। इस दौरान गोलीबारी में एक 19 वर्षीय मुस्लिम युवक की मौत हो गई और कई लोग घायल हुए।नागालैंड सरकार को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है क्योंकि प्रभावित इलाका असम-नागालैंड सीमा से सटा हुआ है। आशंका है कि विस्थापित परिवार सीमा पार करने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे जनसांख्यिकीय और सुरक्षा से जुड़े हालात बिगड़ सकते हैं।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दावा किया कि उनकी सरकार अब तक 160 वर्ग किलोमीटर जमीन को “मुक्त” करा चुकी है, जिससे करीब 50,000 लोग प्रभावित हुए हैं। लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि वे इन इलाकों में बहुत पहले से रह रहे थे, यहां तक कि रिज़र्व फॉरेस्ट घोषित होने से पहले भी।

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