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“क्या मुसलमान होना गुनाह है?” असम में अवैध प्रवासियों की वापसी पर विपक्ष का गंभीर आरोप

असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने हाल ही में असम सरकार द्वारा बांग्लादेश सीमा पर अवैध बताए गए प्रवासियों को जबरन धकेलने पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने इसे संविधान और न्याय प्रक्रिया का उल्लंघन बताया।

मुस्लिम समुदाय को बनाया जा रहा निशाना?
सैकिया ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि असम पुलिस की कार्रवाई खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है, जिससे भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को ठेस पहुंच रही है।

AIUDF ने राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन
AIUDF (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) ने भी इस मुद्दे पर राज्यपाल से शिकायत की है और कहा है कि भारतीय मुस्लिमों को “अवैध प्रवासी” बताकर परेशान किया जा रहा है, जबकि वे भारतीय नागरिक हैं।

बिना सुनवाई के हिरासत में लिए गए लोग
सैकिया ने बताया कि 23 मई से अब तक सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें से कई पर कोई कानूनी कार्यवाही भी नहीं चल रही थी। कुछ को छोड़ा गया, लेकिन ये मामले गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों को उजागर करते हैं।

“नो-मैन्स लैंड” में छोड़े गए नागरिक
मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए सैकिया ने कहा कि महिलाओं समेत कई लोगों को बांग्लादेश बॉर्डर पर नो-मैन्स लैंड में जबरन छोड़ दिया गया, जहां से बांग्लादेश ने उन्हें लेने से मना कर दिया।
एक मामला खासतौर पर सामने आया है – कहिरुल इस्लाम, जो एक पूर्व सरकारी शिक्षक हैं और जिनका नागरिकता मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, फिर भी उन्हें डिटेंशन सेंटर से उठाकर सीमा पार करवा दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक की अनदेखी?
सैकिया ने कहा कि जब नागरिकता से जुड़े कई मामले सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं, ऐसे में इन लोगों को जबरन बॉर्डर पर छोड़ना न्याय प्रक्रिया की सीधी अवहेलना है।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि जब तक मामला लंबित है, कोई भी जबरदस्ती कदम न उठाया जाए।

मुख्यमंत्री का बचाव और विवादास्पद बयान
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, जिनकी छवि मुस्लिम-विरोधी नीतियों को लेकर जानी जाती है, का कहना है कि राज्य को “अवैध प्रवासियों को किसी भी कीमत पर बाहर निकालने” का अधिकार है, और यह काम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत किया जा रहा है।
मानवाधिकार संगठनों की चिंता
मानवाधिकार संगठनों और पीड़ित परिवारों ने इन कार्रवाइयों को लेकर गहरी चिंता जताई है।
उन्होंने कहा कि इससे लोगों को बिना देश के, लंबे समय तक हिरासत में और अपने परिवारों से अलग रहने जैसी त्रासदियां झेलनी पड़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही अनिश्चितकालीन हिरासत पर आपत्ति जताई थी।

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