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मजदूर या अपराधी? छत्तीसगढ़ में 9 बंगालियों को जेल भेजने पर महुआ मोइत्रा का हल्ला बोल

छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले के कोंडागांव में पश्चिम बंगाल से आए 9 प्रवासी मजदूरों को स्थानीय पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। पुलिस का कहना है कि इन मजदूरों ने ज़िले में कई दिनों तक रहने के बावजूद स्थानीय प्रशासन को ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं सौंपे, इसलिए BNSS की धारा 128 (संदिग्ध लोगों से अच्छे व्यवहार की गारंटी लेना) के तहत कार्रवाई की गई।

क्या है पूरा मामला?

ये मजदूर कोंडागांव ज़िले के अलबेडापाड़ा गाँव में एक प्राइवेट स्कूल के निर्माण स्थल पर मिस्त्री का काम कर रहे थे। 12 जुलाई को पुलिस आई और इन्हें काम के दौरान वहीं से उठा लिया। इन सभी मजदूरों के पास वैध दस्तावेज़ थे, लेकिन फिर भी उन्हें बिना कोई नोटिस या सूचना दिए हिरासत में ले लिया गया। बताया जा रहा है कि उन्हें बस्तर के जगदलपुर जेल में रखा गया था।

मजदूरों के नाम और घर

इन मजदूरों की पहचान इस प्रकार हुई है: सोहेल शेख, सहाबुल शेख, इनामुल मंडल, रहीम शेख, सायन शेख, महबूब शेख, मुनिरुल इस्लाम मंडल और रिपन शेख। ये सभी नदिया ज़िले के मथुरापुर और लक्ष्मीपुर गांव (थानारपाड़ा थाना) के निवासी हैं।

महुआ मोइत्रा का बड़ा आरोप

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, जिनका संसदीय क्षेत्र कृष्णानगर है, ने इस घटना को राज्य प्रायोजित अपहरण (State-sponsored kidnapping) बताया है।

उन्होंने कहा –

ये सभी मजदूर मेरे क्षेत्र से हैं। ये एक ठेकेदार के साथ वैध दस्तावेज़ लेकर गए थे। काम कर रहे थे, तभी पुलिस आकर उन्हें उठा ले गई। परिवारवालों को कोई जानकारी नहीं दी गई, न कोई सुनवाई हुई, न वकील से संपर्क कराया गया।उन्होंने यह भी बताया कि मजदूरों के फोन स्विच ऑफ हैं और उनसे अब तक कोई संपर्क नहीं हो सका है।

हाईकोर्ट में दाखिल हुई याचिका

इस घटना के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में सोमवार को एक हेबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की गई।रिपोर्ट्स के मुताबिक, सोमवार शाम को जिला प्रशासन ने एक चिट्ठी देकर मजदूरों को रिहा कर दिया लेकिन अब भी उनके परिवार और बंगाल सरकार को कोई आधिकारिक सूचना या दस्तावेज़ नहीं मिले हैं।

कई सवाल उठते हैं…

* अगर मजदूरों के पास वैध कागज़ात थे, तो उन्हें जेल में क्यों रखा गया?

* क्या प्रशासन ने वाकई नियमों का पालन किया या फिर यह एक राजनीतिक दबाव का मामला है?

* क्या यह प्रवासी मजदूरों के साथ दोहरा मापदंड नहीं है?

निष्कर्ष:

यह घटना कई गंभीर सवाल खड़े करती है क्या प्रवासी मजदूर अब भी इस देश में सुरक्षित हैं? क्या बिना सूचना, वकील और परिवार से संपर्क के किसी को हिरासत में रखना संविधान के खिलाफ नहीं? अब सबकी निगाहें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सुनवाई और आगे की कार्रवाई पर हैं।

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