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बकरीद से ठीक पहले महाराष्ट्र में गोसेवा आयोग का बड़ा फैसला: 3 से 8 जून तक राज्यभर के पशु बाजार रहेंगे बंद

बकरीद (ईद-उल-अजहा) से ठीक पहले महाराष्ट्र में एक अहम प्रशासनिक कदम ने धार्मिक और सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है। महाराष्ट्र राज्य गोसेवा आयोग ने 3 जून से 8 जून 2025 तक राज्य की सभी कृषि उपज मंडी समितियों (APMC) को पशु बाजार बंद रखने का निर्देश दिया है। आयोग का कहना है कि यह कदम गाय और बैल जैसे मवेशियों के अवैध वध को रोकने के लिए जरूरी है।

गोसेवा आयोग का परिपत्र: आदेश या सलाह?

गोसेवा आयोग ने 27 मई को सभी APMC को एक परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि बकरी ईद के दौरान बड़े पैमाने पर जानवरों की बलि दी जाती है, इसलिए एहतियातन पूरे राज्य में एक हफ्ते तक कोई भी पशु बाजार आयोजित न किया जाए। आयोग के अध्यक्ष शेखर मुंडाडा के मुताबिक, यह आदेश महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम के तहत जारी किया गया है और इसे “सिर्फ सलाह” के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि इसका उद्देश्य गायों और बैलों के अवैध वध को रोकना है, न कि अन्य जानवरों जैसे बकरी, भेड़ या भैंस के व्यापार को स्थायी रूप से बंद करना।

महाराष्ट्र में मवेशी वध पर सख्त कानून

महाराष्ट्र में गाय और बैल का वध पूरी तरह प्रतिबंधित है। यहां तक कि उनके मांस का भंडारण या परिवहन भी दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे में गोसेवा आयोग का कहना है कि ईद के समय में पशु बाजार खुले रहने से गैरकानूनी गतिविधियों की संभावना बढ़ जाती है।

बकरा, भेड़ और भैंस व्यापार पर भी रोक?

हालांकि, इस आदेश का असर केवल मवेशियों तक सीमित नहीं रहा। भेड़, बकरी और भैंस जैसे छोटे पशुओं की खरीद-बिक्री पर भी इस आदेश से रोक लग गई है, क्योंकि पूरे राज्य के 292 पशु बाजार एक सप्ताह के लिए बंद हो गए हैं। इस आदेश का असर सीधे तौर पर उन व्यापारियों, किसानों और समुदायों पर पड़ा है जो बकरी ईद से पहले अपने जानवरों की बिक्री करते हैं या खरीदते हैं।

मुस्लिम समुदाय में विरोध और नाराजगी

इस निर्णय के खिलाफ मुस्लिम समाज और कुरैशी-खटीक समुदाय में खुला विरोध देखने को मिला है। फारूक अहमद, वंचित बहुजन अघाड़ी के राज्य उपाध्यक्ष, ने नांदेड में इस आदेश के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कहा: “ईद एक धार्मिक उत्सव है जिसमें कुरबानी का धार्मिक महत्व है। गोसेवा आयोग को कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है कि वह सीधे बाजार बंद करने का आदेश जारी करे। इससे किसानों, मजदूरों और कसाई समुदाय की रोज़ी-रोटी पर संकट आ गया है।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर गाय और बैल के वध पर कानून है, तो फिर बकरी और भेड़ों के व्यापार पर रोक क्यों?

किसानों और पशुपालकों को भी झटका

महाराष्ट्र में कुल 305 प्रमुख और 603 गौण APMC मंडियां हैं जिनके अधीन ये 292 पशु बाजार चलते हैं। इन बाजारों का किसानों के लिए विशेष महत्व होता है। मानसून के आगमन के साथ ही किसान खेती के लिए बैल और अन्य पशु खरीदते हैं और फसल कटाई के बाद उन्हें बेचकर खर्चों की पूर्ति करते हैं। इस हफ्ते की बंदी का मतलब है कि इस पूरे चक्र में बाधा आ गई है, जिससे पशुपालन आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।

समाधान की ज़रूरत

राज्य सरकार और गोसेवा आयोग का दावा है कि उनका उद्देश्य अवैध वध रोकना है, लेकिन इसके व्यापक सामाजिक और आर्थिक परिणामों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गाय और बैल जैसे प्रतिबंधित जानवरों के अवैध वध पर रोक लगे, लेकिन साथ ही भेड़-बकरी जैसे वैध व्यापार पर अनावश्यक पाबंदियां न लगें। वहीं आयोग को भी यह स्पष्ट करना होगा कि उसकी सलाह कानूनी बाध्यता नहीं है, और न ही उसे प्रशासनिक आदेश का रूप देना चाहिए।

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