देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को वक्फ संशोधन बिल को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही यह विधेयक अब कानून का रूप ले चुका है, लेकिन अब इस पर दिल्ली के विधायक अमानतुल्लाह खान और एक गैर सरकारी तंजीम ‘एपीसीआर’ (Association for Protection of Civil Rights) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इन दोनों के अलावा असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद भी कोर्ट में याचिका दायर की है. इन लोगों का कहना है कि ये नया कानून न सिर्फ संविधान में दिए गए मौलिक हकों की धज्जियाँ उड़ाता है बल्कि मुल्क के लोकतंत्र और सेक्युलरिज्म की बुनियाद को भी हिलाने वाला है.
अब ऐसे ये सवाल कि अगर इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई गई है तो क्या सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर सकता?, क्या सुप्रीम कोर्ट को इतनी शक्तियां होती है कि सरकार के द्वारा बनाए गए कानून को रद्द कर दे और साथ ही अगर कानून लागू हुआ तो क्या बड़े बदलाव होंगे?, तो चलिए समझते है.
विपक्ष के विरोध के बीच वक्फ संशोधन बिल चर्चा के बाद पहले लोकसभा से फिर राज्यसभा से पास हो गया और शनिवार देर शाम को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ संशोधन बिल को मंजूरी भी दे दी. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद वक्फ संशोधन बिल अब कानून बन गया है. सरकार ने नए वक्फ कानून को लेकर गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. अब इसके आगे की राह कैसी होगी ये कई मायनों में अहम है. अब वक्फ कानून कब तक लागू होगा ये सरकार पर निर्भर करता है क्योंकि कानून को लागू करने की तारीख को लेकर केंद्र सरकार अलग से एक नोटिफिकेशन जारी करेगी और यह कानून पूरे देश में लागू हो जाएगा, लेकिन इन सब के बीच अब अमानतुल्लाह खान और एपीसीआर ने जो याचिका दाखिल की है, उसमें ये कहा गया है कि ये कानून सीधे-सीधे संविधान के कई आर्टिकल्स की धज्जियां उड़ा रहा है कैसे जरा समझिए.
अनुच्छेद 14: सबको कानून की नजर में बराबरी का हक. लेकिन जब एक खास समुदाय की संपत्तियों को निशाना बनाया जा रहा है, तो ये बराबरी कहां रह गई?
अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव मना है, लेकिन ये कानून तो मुसलमानों की वक्फ प्रॉपर्टी पर ही लागू हो रहा है. तो क्या इस अनुच्छेद का उल्लंघन है. इसके अलावा अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार. अगर कोई अपनी जमीन किसी धार्मिक काम के लिए वक्फ कर दे, तो उसमें सरकार की दखलंदाजी कैसे हो सकती है?
अब अमानतुल्लाह खान और एपीसीआर का मानना है कि अनुच्छेद 25 और 26: धार्मिक स्वतंत्रता का हक देता है, जिसमें अपने धर्म को मानना, प्रचार करना और धार्मिक संस्थाएं चलाना शामिल है. लेकिन जब वक्फ संपत्तियां ही छीन ली जाएंगी, तो मस्जिद और मदरसे कैसे चलेंगे? साथ ही ये भी उनका कहना है कि अनुच्छेद 29 और 30 जोकि अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति और संस्थाएं बनाए रखने का हक। लेकिन ये कानून तो अल्पसंख्यकों की संस्थाओं पर ही ताला लगाने वाला है.
अब जरा ध्यान से समझिए कि अगर सरकार कोई नया कानून बनाती है और किसी को लगता है कि ये संविधान के खिलाफ है या लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो वो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट के पास ये ताकत है कि अगर कोई कानून संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे रद्द कर सकता है.
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट किसी कानून को सिर्फ इस आधार पर रद्द नहीं कर सकता कि वो संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है. उसे यह दिखाना होता है कि कानून संविधान के किसी विशेष प्रावधान या मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
तो, अगर वक्फ कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है, और याचिकाकर्ता यह साबित कर पाते हैं कि यह विधेयक संविधान के किसी अनुच्छेद या मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, तो सुप्रीम कोर्ट के पास इसे रद्द करने का अधिकार होगा.
इससे पहले हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने कई बार ऐसे कानूनों को खारिज किया है जो संविधान के खिलाफ थे या लोगों के हकों का उल्लंघन कर रहे थे. मिसाल के तौर पर धारा 66A, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2015): ये कानून कहता था कि अगर कोई इंटरनेट पर कुछ ‘आपत्तिजनक’ लिखे, तो उसे जेल हो सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया, ये कहते हुए कि ये लोगों की बोलने की आज़ादी के खिलाफ है.
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): सरकार ने संविधान में कुछ बदलाव किए थे, जिससे संसद को असीमित शक्ति मिल जाती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद संविधान की मूल संरचना को नहीं बदल सकती और इन बदलावों को रद्द कर दिया. ऐसे भी कई मिसालें है तो इन मिसालों से समझ आता है कि सुप्रीम कोर्ट हमारे संविधान और लोगों के हकों की रक्षा के लिए खड़ा है. जब भी कोई कानून गलत होता है या हमारे मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो कोर्ट उसे खारिज कर सकता है.