पहलगाम हमले में 26 लोगों ने अपनी जिंदगियां गवां दी. एक झटके में मातम पसर गया, और अब इस गम के साथ उबाल मार रहा है गुस्सा. देश सुन्न है, पर सोशल मीडिया पर सवालों का सैलाब उमड़ रहा है. हर कोई जानना चाहता है, आखिर उस दिन ये कैसे हुआ? बैसरन में सुरक्षा क्यों नहीं थी? आम लोगों को क्यों निशाना बनाया गया?
पहलगाम में हुए हमले में शीतल कलाठिया ने अपने पति को खो दिया. मंत्री से मिलकर उन्होंने सवाल उठाया कि वीआईपी सुरक्षा पाते हैं, पर आम आदमी क्यों नहीं? हमले के वक्त वहां कोई सुरक्षा या मेडिकल मदद नहीं थी. बचे हुए पारस जैन ने भी बताया कि 25-30 मिनट तक चले हमले में कोई पुलिस या सैनिक मौजूद नहीं था, जबकि पास में ही सीआरपीएफ और सेना के कैंप थे.
पहलगाम के जख्म धीरे-धीरे भर रहे हैं, लेकिन सवालों की एक पूरी फेहरिस्त सामने आ खड़ी हुई है. इनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर बैसरन जैसे मशहूर टूरिस्ट स्पॉट पर सुरक्षा क्यों नहीं थी? इसे लेकर विशेषज्ञ क्या कहते हैं.
बैसरन में सुरक्षा क्यों नहीं थी?
हमले के बाद से सबसे बड़े सवाल ये खड़ा होता है कि पहलगाम की फेमस जगह पर सुरक्षा क्यों नहीं थी। बीबीसी की खबर के मुताबिक, पत्रकार और कश्मीर मामलों की जानकार अनुराधा भसीन कहती हैं कि उन्हें याद नहीं कि 1990 के बाद कश्मीर में कोई ऐसी जगह थी जहां सुरक्षा न हो। इसलिए, इस जगह पर सुरक्षा न होना अजीब बात है।हमले के बाद हमलावरों के नाम इतनी जल्दी कैसे पता चले। उनके हिसाब से, सुरक्षा बलों को आने में टाइम लगा, पर उनके पास तुरंत हमलावरों की फोटो थी। उन्हें यह जांच सही नहीं लगती। धारा 370 हटने के बाद भी कश्मीर में हमले हुए हैं, छोटे ही सही। उनके हिसाब से, पिछले पांच साल में जो सुकून है, वह ज्यादा सैनिकों की वजह से है, टेरिरिज्म खत्म होने की वजह से नहीं।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व एसपी वैद मानते हैं कि जब टूरिस्ट को दूर किसी जगह पर ले जाया जा रहा था, तो वहां पुलिस वालों को होना चाहिए था। उनका कहना है कि हथियार वाली पुलिस या दूसरे सुरक्षा बलों को वहां होना चाहिए था, जिससे हमलावरों से लड़ा जा सकता था। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस हर जगह नहीं हो सकती क्योंकि पुलिस वाले कम हैं, लेकिन दूर की जगहों पर घूमने वालों के लिए कुछ पुलिस वाले जरूर होने चाहिए थे।
आम लोगों को क्यों निशाना बनाया गया?
पहलगाम हमले में आम लोगों को निशाना बनाना एक अलग तरह की रणनीति को दिखाता है। पहले सैनिकों या पुलिस पर हमले होते थे, लेकिन इस बार आम लोगों को मारा गया, जो बहुत वक़्त बाद हुआ है।
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) सतीश दुआ कहते हैं कि, कश्मीर में हालात सुधर रहे थे और टूरिज्म बढ़ रहा था। आमतौर पर हमलावर घूमने फिरने वाली जगहों को निशाना नहीं बनाते क्योंकि इससे आम लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ता है और उनका साथ खो जाता है। पहले वे टूरिस्ट को कश्मीर आने के लिए कहते थे क्योंकि वहां हमले नहीं होते थे।
दुआ मानते हैं कि नागरिकों को निशाना बनाने का मकसद देश के बाकी हिस्सों में गुस्सा भड़काना हो सकता है। उन्होंने हिंदू पुरुषों को अलग करके मारा ताकि महिलाएं वापस जाकर इसकी कहानी सुनाएं, जिससे पूरे देश की भावनाएं भड़कें। उनका कहना है कि भारत को उनके इस जाल में नहीं फंसना चाहिए। यह हमला 2023 में इजराइल पर हमास के हमले जैसा है, जहां निर्दोष नागरिकों, खासकर टूरिस्ट को मारकर ज्यादा असर डाला गया।
क्या यह हमला खुफिया एजेंसियों की असफलता?
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) सतीश दुआ भी इसे खुफिया चूक मानते हैं। उनका कहना है कि हम बेहतर खुफिया जानकारी जुटा सकते थे। उन्होंने पाकिस्तान के आर्मी चीफ के एक बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने हिंदू-मुसलमानों के बारे में बात की थी। दुआ का मानना है कि हमें उस मैसेज को समझना चाहिए था, क्योंकि बड़े आतंकी हमले ऊपर के स्तर पर मंजूर होते हैं। इसलिए, हमें ऐसी चीजों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए था और अपनी जमीनी जानकारी को और मजबूत करना चाहिए था। दुआ का कहना है कि हमें इंसानी खुफिया जानकारी (लोगों से मिलने वाली जानकारी) को सुधारने की जरूरत है, क्योंकि हम आजकल इलेक्ट्रॉनिक खुफिया जानकारी पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गए हैं। दोनों तरह की जानकारी का सही तालमेल होना चाहिए।