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दैनिक भास्कर और नव दुनिया पर मुसलमानों को बदनाम करने का आरोप, मुकदमा दर्ज

दो बड़े हिंदी अखबारों, दैनिक भास्कर और नव दुनिया, अब कानूनी मुश्किल में फंस गए हैं। मारूफ अहमद खान नाम के एक व्यक्ति ने इन अखबारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। उनका कहना है कि अखबारों ने अपनी खबरों में “लव जिहाद” शब्द का इस्तेमाल करके एक पूरे समुदाय को गलत तरीके से बदनाम किया है। खान का आरोप है कि इन अखबारों ने ऐसा करके समाज में नफरत फैलाने और गलत जानकारी देने का काम किया है।

खान का कहना है कि अखबार जिस तरह से “लव जिहाद” जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसका कोई कानूनी मतलब नहीं है और सरकार भी इसे मान्यता नहीं देती। अखबारों ने एक आपराधिक मामले को एक खास समुदाय से जोड़ दिया है और ऐसी बातें फैला रहे हैं जो लोगों को भड़का सकती हैं। खान खुद को एक देशभक्त नागरिक बताते हैं जो देश की एकता और अखंडता के लिए काम करते हैं।

नफरत फैलाने का किया जा रहा काम 

खान के मुताबिक, अखबार आपराधिक घटनाओं के बारे में लिखते समय “लव जिहाद” जैसे शब्दों का इस्तेमाल बिना सोचे-समझे कर रहे हैं। उन्होंने साफ किया कि भारतीय कानून में “लव जिहाद” कोई अपराध नहीं है और यहां तक कि एनआईए जैसी बड़ी जांच एजेंसी ने भी इसे अपराध नहीं माना है। खान का मानना है कि अखबार इस शब्द का गलत इस्तेमाल करके समुदायों को बांटने और नफरत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

मुसलमानों को बनाया जा रहा निशाना 

यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब 26 अप्रैल, 2025 को नव दुनिया ने एक खबर छापी जिसमें “मुस्लिम युवकों के दूसरे गिरोह” का जिक्र था। उसी दिन दैनिक भास्कर ने भी एक खबर छापी जिसमें एक आपराधिक मामले को “केरल स्टोरी पैटर्न ऑफ लव जिहाद” से जोड़ा गया था। खान का कहना है कि ये हेडलाइन सिर्फ गलत ही नहीं हैं, बल्कि देश के सामाजिक ढांचे के लिए भी खतरनाक हैं, क्योंकि इनमें धर्म के आधार पर लोगों को गलत तरीके से निशाना बनाया गया है।

खान ने यह भी कहा कि इन हेडलाइनों से ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति का धर्म ही उसकी गलती साबित करने के लिए काफी है, जबकि अभी जांच भी पूरी नहीं हुई है और अदालत का कोई फैसला भी नहीं आया है। उनके मुताबिक, यह पत्रकारिता के नियमों का सीधा उल्लंघन है, क्योंकि आरोपी तब तक दोषी नहीं माना जाता जब तक अदालत में वह साबित न हो जाए।

वकील ने भी जताई चिंता

खान के वकील, दीपक बुंदेले ने भी “लव जिहाद” शब्द के इस्तेमाल पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि इस शब्द का कोई कानूनी आधार नहीं है। बुंदेले ने यह भी बताया कि कुरान में भी “लव जिहाद” का कोई जिक्र नहीं है, इसलिए किसी आपराधिक जांच के संदर्भ में इसका इस्तेमाल करना गलत है। उनका मानना है कि यह शब्द सिर्फ मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने और हिंदू-मुसलमानों के बीच फूट डालने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। बुंदेले ने जोर देकर कहा कि भारतीय कानून में “लव जिहाद” की कोई परिभाषा नहीं है और अगर यह सच में कोई अपराध होता, तो कानून इसे जरूर मानता।

 “जिहाद” का गलत इस्तेमाल कर रहे अखबार

खान का कहना है कि इस तरह की गलत खबरें देश के न्याय को कमजोर करती हैं। उन्होंने कुरान में “जिहाद” के सही मतलब के बारे में भी बताया कि यह न्याय, शांति और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष के लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन अखबार इसे गलत तरीके से पेश कर रहे हैं ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके और सांप्रदायिक नफरत फैलाई जा सके। खान का आखिर में यही कहना है कि उनकी लड़ाई सिर्फ इन अखबारों को जिम्मेदार ठहराने के लिए नहीं है, बल्कि यह संदेश देने के लिए भी है कि भारत जैसे देश में ऐसी विभाजनकारी और गलत खबरें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।

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