ग़ज़ा में लगातार बिगड़ती मानवीय स्थिति और इज़रायल द्वारा जारी सैन्य कार्रवाई व नाकाबंदी के चलते यूरोपीय संघ (EU) ने मंगलवार को इज़रायल के साथ अपने ‘एसोसिएशन एग्रीमेंट’ की समीक्षा करने की घोषणा की है। यूरोपीय संघ की उच्च प्रतिनिधि Kaja Kallas ने इस फैसले को “जरूरी” और “तत्काल मानवीय राहत की मांग” से जुड़ा बताया।
“ग़ज़ा में हालात बेहद गंभीर हैं”
काया कैलास ने कहा, “इज़रायल द्वारा दी जा रही मानवीय मदद एक महासंकट के आगे समुंदर में एक बूँद के समान है। हजारों ट्रक सीमाओं पर फंसे हुए हैं। मदद को ग़ज़ा के लोगों तक तुरंत और बिना रुकावट पहुँचने दिया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि ब्रसेल्स में हुई विदेश मंत्रियों की बैठक में “ज्यादातर सदस्य देश” इस समीक्षा के पक्ष में थे।
डच विदेश मंत्री कैस्पर वेल्डकैंप द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को 27 में से 17 सदस्य देशों का समर्थन मिला। प्रस्ताव में इज़रायल की नीतियों को “मानवीय हालात को और बदतर करने वाला” बताया गया है।
क्या है ‘एसोसिएशन एग्रीमेंट’?
यह समझौता साल 2000 से लागू है और इसके अनुच्छेद 2 में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि “यूरोपीय संघ और इज़रायल के संबंध मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान पर आधारित होंगे।” अगर इज़रायल इस शर्त का उल्लंघन करता है, तो यूरोपीय संघ भी इस समझौते के तहत अपने दायित्वों को निभाने में विफल माना जाएगा।
काया कैलास ने कहा, “हम सिर्फ़ स्वागत योग्य बयानों पर नहीं, ठोस कार्रवाई पर विश्वास करते हैं। यह समीक्षा इसी दिशा में एक कदम है।”
क्या केवल समीक्षा ही काफ़ी है?
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अरब मूल के कई नेताओं ने इस फैसले को नाकाफ़ी बताया है। ‘हिंद रजब फाउंडेशन’ के संस्थापक दियाब अबू जाहजाह ने लिखा, “जब ग़ज़ा को भूखा रखा गया, बमबारी की गई, अस्पतालों में सामूहिक कब्रें बनीं और बच्चों को मलबे से निकाला गया — यूरोप चुप था। अब जब दुनिया ने सब कुछ देख लिया, तो बस एक ‘समीक्षा’ की घोषणा की गई, और इसे प्रगति कहा जा रहा है।”
उन्होंने यूरोपीय संघ की आलोचना करते हुए कहा, “यह जवाबदेही नहीं, महज़ इमेज बचाने की कोशिश है। अगर यूरोप इंसाफ के साथ खड़ा होना चाहता है तो समझौते को निलंबित करे, हथियारों की बिक्री रोके और ज़िम्मेदारों को सज़ा दिलवाए।”
इज़रायल की नई योजना और ईयू की नाराज़गी
इस बीच इज़रायल सरकार ने ग़ज़ा में मानवीय मदद पहुँचाने के लिए एक नया ढांचा अपनाने की बात कही है, लेकिन ईयू ने इसपर भी नाराज़गी जताई। संयुक्त बयान में ईयू ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र और हमारे मानवीय साझेदार उस योजना का समर्थन नहीं कर सकते जो मानवीय सिद्धांतों का पालन नहीं करती।”
डच विदेश मंत्री ने क्या कहा?
कैस्पर वेल्डकैंप ने एक पत्र में लिखा कि “इज़रायल के कुछ मंत्रियों द्वारा ग़ज़ा, सीरिया और लेबनान पर स्थायी नियंत्रण की बात करना बेहद चिंताजनक है।” उन्होंने कहा कि इज़रायल की कार्रवाइयाँ वेस्ट बैंक की स्थिति को भी और खराब कर रही हैं।
उन्होंने यूरोपीय संघ के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, “यह अच्छा है कि ईयू ने आज एक स्पष्ट संदेश दिया है कि इज़रायल को मानवीय नाकाबंदी को तुरंत और पूरी तरह खत्म करना होगा।”
क्या ईयू वास्तव में दबाव में आया?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूरोपीय संघ पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा था। विशेषकर जब रिपोर्ट्स में सामने आया कि 50,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, अस्पतालों में सामूहिक कब्रें मिली हैं, और ग़ज़ा में लगभग हर संरचना नष्ट हो चुकी है। फिर भी, आलोचक सवाल पूछ रहे हैं कि इतने बड़े संकट के बावजूद यूरोपीय संघ ने सिर्फ़ समझौते की “समीक्षा” का रास्ता क्यों चुना, निलंबन या रद्द करने का नहीं?
क्या आगे की राह में बदलाव आएगा?
काया कैलास ने अपने बयान में इस समीक्षा को “एक शुरुआत” बताया है, न कि अंतिम फैसला। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि “अगर इज़रायल मानवाधिकारों का सम्मान नहीं करता है तो ईयू को अपने समझौते की शर्तों का पालन करते हुए उचित कार्रवाई करनी होगी।” हालांकि यह तय है कि समीक्षा प्रक्रिया में हफ्तों, शायद महीनों लग सकते हैं। जब तक यह प्रक्रिया पूरी होती है, ग़ज़ा की हालत और कितनी खराब हो जाएगी — इसका अंदाज़ा लगाना भी कठिन है।