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राजनीतिक लाभ के लिए नरसंहार का इस्तेमाल? बीजेपी की पोस्ट पर सवाल

कर्नाटक बीजेपी ने अपने एक्स अकाउंट पर एक एआई जनरेडिटड तस्वीर अपलोड की. इस तस्वीर में अमित शाह फूलगोभी पकड़े हुए नजर आ रहे हैं. और एक पत्थर है जिस पर लिखा था, “नक्सलवाद अब खत्म”। ये फोटो देखने में बहुत ही नॉर्मल नजर आ रही है. लेकिन हकीकत इसकी कुछ और है. दरअसल ये तस्वीर 1989 में हुए भागलपुर नरसंहार की तरफ इशारा करती है. इस दौरान भागलपुर में मुसलमानों को मारकर फूलगोभी के खेतों में छुपा दिया गया था।

ये पोस्ट, ऑपरेशन कागर में बिना कानून के हत्याओं का जश्न मना रही है.  वहीं इस तस्वीर ने उन लोगों के जख्मों को फिर से हरा कर दिया जिनके साथ बुरा हुआ था. साथ ही  यह तस्वीर दिखाती है कि  एक राजनीतिक पार्टी कितनी असंवेदनशील हो सकती है। भाजपा की पोस्ट के बाद आलोचकों का कहना है कि ये नफरत फैलाने का तरीका है। भागलपुर नरसंहार का मजाक उड़ाया जा रहा है. कैसे एक पार्टी इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकती है. जानेंगे कि भागलपुर नरसंहार क्या है, कैसे हुआ और भाजपा ने इस फोटो का इस्तेमाल क्यों किया. 

भागलपुर नरसंहार क्या है

भागलपुर नरसंहार 1989 में बिहार के भागलपुर जिले में हुई हिन्दू-मुस्लिम हिंसा है। यह हिंसा 24 अक्टूबर 1989 को शुरू हुई और लगभग 2 महीने तक जारी रही, जिससे भागलपुर शहर और उसके आसपास के लगभग 250 गाँव इसकी जद में आए. इस नरसंहार में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 1,070 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे। कुछ सोर्स का दावा है कि मरने वालों की संख्या 2,000 तक थी। लगभग 50,000 लोग दरबदर हुए। यह उस समय स्वतंत्र भारत में हिंदू-मुस्लिम हिंसा का सबसे भयानक उदाहरण था।

इस हिंसा के दौरान, कई भयावह घटनाएं हुईं, जैसे कि लोगैन गाँव में 100 से अधिक मुसलमानों की हत्या और उनके शवों को फूलगोभी के खेतों में छिपाना। नवबाजार इलाके में 11 बच्चों सहित 18 मुसलमानों को सार्वजनिक रूप से मार डाला गया। जमुना कोठी में शरण लिए हुए 19 बच्चों सहित लगभग 44 मुसलमानों पर हमला किया गया, जिसमें 18 मारे गए, कुछ के सिर काट दिए गए और कुछ को तीसरी मंजिल से फेंक दिया गया। हिंसा को रोकने में स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में रही। आरोप लगे कि पुलिस ने समय पर और प्रभावी कार्रवाई नहीं की, जिससे हिंसा बेकाबू हो गई, भागलपुर नरसंहार भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसके पीड़ितों को आज भी पूरी तरह से न्याय का इंतजार है।

भागलपुर नरसंहार क्यों हुआ

इस नरसंहार के पीछे कई कारण थे। 24 अक्टूबर 1989 को रामशिला पूजन के एक जुलूस को लेकर हुआ विवाद था। कुछ sources के मुताबिक, मुसलमानों ने जुलूस को अपने इलाके से गुजरने से रोकना चाहा, जिससे झड़पें हुईं और हिंसा भड़क उठी। वहीं, कुछ दूसरी रिपोर्टों में कहा गया है कि जुलूस में शामिल लोगों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाए गए, जिससे हिंसा शुरू हुई। इसके अलावा, भागलपुर में लंबे समय से चले आ रहे सांप्रदायिक तनाव, सामाजिक और आर्थिक असमानताएं भी इस हिंसा को बढ़ावा दे रही थीं। कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि राजनीतिक दलों ने भी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने में अहम भूमिका निभाई।

भागलपुर नरसंहार के बाद क्या हुआ

भागलपुर दंगों की जांच के लिए बनी कमेटी ने 1995 में पुलिस को दोषी ठहराया। मार्च 1990 में फिर हिंसा हुई। पुलिस ने 142 शिकायतें दर्ज कीं और 1,283 लोगों को आरोपी बनाया, पर ज़्यादातर सबूतों की कमी से छूट गए। पीड़ितों ने कांग्रेस सरकार पर मदद न करने का आरोप लगाया, जिसके बाद मुख्यमंत्री बदले गए। पूर्व मुख्यमंत्री सिन्हा ने अपनी पार्टी और राजीव गांधी पर दंगों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। इस नरसंहार का बिहार की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा, तत्कालीन कांग्रेस सरकार को राजनीतिक नुकसान हुआ और लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार जैसे नेताओं का उदय हुआ।हिंसा के बाद बिहार के मुसलमानों ने कांग्रेस छोड़ लालू यादव का समर्थन किया। कुछ दोषियों को सजा मिली (जैसे 2005 में 10 लोगों को, 2007 में 14 लोगों को), लेकिन कई आरोपी छूट गए। नवंबर 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद, उन्होंने भागलपुर दंगों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, जिसके मुखिया जस्टिस एनएन सिंह थे। इस कमेटी ने फरवरी 2015 में 1000 पन्नों की रिपोर्ट दी। यह रिपोर्ट 7 अगस्त 2015 को बिहार विधानसभा में पेश की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि उस समय की कांग्रेस सरकार, स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने ठीक से काम नहीं किया, जिसकी वजह से ये खतरनाक दंगे हुए।

इस घटना से फिर वही सवाल उठता है कि क्या नेता लोग अपने फायदे के लिए इतनी दुख भरी घटनाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं? सोशल मीडिया पर लोग जो सवाल पूछ रहे हैं और गुस्सा दिखा रहे हैं, उससे देखना होगा कि आगे क्या होता है। ये घटना सिर्फ भागलपुर में जिनका नुकसान हुआ उनके लिए नहीं, बल्कि हम सबके लिए एक सीख है कि नफरत और हिंसा किसी भी तरह से ठीक नहीं है।

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