अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा कानूनी झटका देते हुए मैनहटन की कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने उनकी ‘लिबरेशन डे’ नामक आयात शुल्क (टैरिफ) योजना को असंवैधानिक करार दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक अधिकार अधिनियम (IEEPA) के तहत मिले राष्ट्रपति के अधिकारों का उल्लंघन किया है। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसले में कहा कि “राष्ट्रपति अनियंत्रित रूप से व्यापार नीति नहीं बना सकते। संविधान के तहत यह अधिकार केवल कांग्रेस को है।”
ट्रंप प्रशासन का बचाव और अदालत का जवाब
ट्रंप प्रशासन ने तर्क दिया था कि विदेशी व्यापार घाटा एक “राष्ट्रीय आपात स्थिति” है और इससे निपटने के लिए आपातकालीन अधिकारों का प्रयोग ज़रूरी था। उन्होंने दावा किया कि इन टैरिफ की धमकी ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को भी कम करने में मदद की, खासकर 22 अप्रैल को पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) में हुए आतंकी हमले के बाद। हालांकि अदालत ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि “कानून की नजर में कोई भी आपातकाल राष्ट्रपति को असीमित अधिकार नहीं देता।”
अदालत का रुख
अदालत ने साफ कहा कि वह टैरिफ की उपयोगिता पर नहीं, बल्कि उनके कानूनी आधार पर फैसला सुना रही है। “यह मामला राष्ट्रपति की रणनीति की बुद्धिमानी पर नहीं, बल्कि कानून के दायरे पर है,” फैसले में कहा गया।
किन्होंने दी चुनौती
यह फैसला दो मुकदमों के बाद आया—एक Liberty Justice Center ने पांच छोटे अमेरिकी व्यवसायों की ओर से और दूसरा 13 अमेरिकी राज्यों ने दायर किया था। उनका तर्क था कि बिना कांग्रेस की अनुमति के लगाए गए ये टैरिफ उनके व्यापार को नुकसान पहुंचाएंगे।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
ट्रंप प्रशासन ने तुरंत फैसले के खिलाफ अपील करने की घोषणा की। ट्रंप ने 2 अप्रैल को इन टैरिफ का ऐलान किया था, जिसमें चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों पर विशेष तौर पर शुल्क लगाए गए थे। हालांकि, बाज़ार में आई हलचल के बाद कुछ देशों पर लगाए गए शुल्कों को अस्थायी रूप से रोक दिया गया था।
व्हाइट हाउस का हमला
व्हाइट हाउस के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ स्टीफन मिलर ने अदालत के फैसले की तीखी आलोचना की और कहा कि “न्यायिक तख्तापलट बेकाबू हो गया है।”