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कर्नाटक: मुस्लिमों को सरकारी ठेकों में आरक्षण देने वाले बिल पर राज्यपाल ने फिर ठुकराई राज्य सरकार की अपील, राष्ट्रपति को भेजा मामला

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुस्लिम समुदाय को सरकारी ठेकों में 4% आरक्षण देने वाले विवादास्पद “कर्नाटक सार्वजनिक खरीद पारदर्शिता (संशोधन) विधेयक, 2025” को राष्ट्रपति के पास भेजने के अपने फैसले पर अडिग रहते हुए राज्य सरकार की पुनर्विचार की मांग को खारिज कर दिया है।

राज्यपाल गहलोत ने 22 मई को पुष्टि की कि यह विधेयक पहले ही संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राष्ट्रपति के “सौजन्य विचार” के लिए भेजा जा चुका है। राज्य सरकार की यह लगातार कोशिश थी कि राज्यपाल इस बिल को खुद ही मंज़ूरी दे दें, खासकर तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यपालों को बिल अटकाने के लिए फटकार लगाए जाने के बाद।

राज्यपाल बोले: राष्ट्रपति को भेजना ही एकमात्र संवैधानिक रास्ता

राज्यपाल गहलोत ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि, “संविधान के अनुसार राज्यपाल के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिससे वह किसी विधेयक की संवैधानिक वैधता की पुष्टि अदालत से करा सकें। इसलिए राष्ट्रपति के पास भेजना ही एकमात्र वैकल्पिक और संवैधानिक तरीका है।” गहलोत ने यह भी जोड़ा कि, “जब राज्यपाल को किसी विधेयक की संविधानिक वैधता पर संदेह हो, तो केवल राष्ट्रपति ही उस पर अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से राय मांग सकते हैं।”

राज्य सरकार की दलील: आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं, पिछड़ेपन पर है

सरकार का कहना है कि यह आरक्षण सिर्फ धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए है। कर्नाटक में मुस्लिमों को OBC की श्रेणी II(B) में आधिकारिक रूप से शामिल किया गया है, जिससे उन्हें आरक्षण का हक़ मिला है।

लेकिन राज्यपाल गहलोत का कहना है कि इस II(B) कैटेगरी में केवल मुस्लिम समुदाय ही शामिल है, जिससे यह बिल पूरी तरह धर्म-आधारित प्रतीत होता है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 का हवाला दिया, जो केवल धर्म के आधार पर आरक्षण या विशेष लाभ देने से रोकते हैं।

दो बार लौटा चुके हैं बिल

राज्यपाल पहले भी यह विधेयक दो बार विधानमंडल को लौटा चुके हैं, और दोनों बार उन्होंने संविधानिक आपत्तियों का हवाला दिया था। अब इसे राष्ट्रपति को भेजने के साथ मामला आगे और संवैधानिक जटिलता में जा सकता है, और अंततः यह सुप्रीम कोर्ट की राय लेने की स्थिति में पहुँच सकता है।

क्या है विधेयक?

यह विधेयक उन सरकारी निविदाओं (टेंडरों) में 4% आरक्षण देने की बात करता है जो ₹2 करोड़ या उससे कम राशि की हैं। इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों को उद्यम और आर्थिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में अवसर देना है।

राजनीतिक और संवैधानिक टकराव

यह मामला अब राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच के बढ़ते टकराव का एक और उदाहरण बन गया है। तमिलनाडु, पंजाब, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पहले ही ऐसे विवाद देखे जा चुके हैं, जहां राज्यपालों द्वारा विधेयकों को रोककर रखने या राष्ट्रपति के पास भेजने की प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट तक को टिप्पणी करनी पड़ी है।

अब यह विधेयक राष्ट्रपति की मंज़ूरी की प्रतीक्षा करेगा। अगर राष्ट्रपति को भी इसमें कोई संविधानिक संदेह हुआ, तो मामला अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट भेजा जा सकता है। इससे यह विधेयक लटक सकता है, और राज्य सरकार की योजना को गंभीर झटका लग सकता है।

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