एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिकानेर, राजस्थान में ₹26,000 करोड़ के विकास प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि, “देश आज जो खर्च कर रहा है, वह पहले की तुलना में 6 गुना ज़्यादा है।” रेलवे स्टेशन, सड़कों और बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण पर ज़ोर देते हुए बताया गया कि 18 राज्यों में 102 रेलवे स्टेशन नए रूप में तैयार किए गए हैं। लेकिन दूसरी ओर, सफाईकर्मियों की ज़िंदगी में कोई बदलाव नहीं आया। वे आज भी जान जोखिम में डालकर नालियों और सेप्टिक टैंकों की सफाई कर रहे हैं।
बिकानेर में मौत: सोना निकालने के लालच में गई 6 जानें
सोमवार को बिकानेर की एक ज्वेलरी फैक्ट्री में 6 सफाईकर्मियों की दम घुटने से मौत हो गई। मैनेजमेंट ने उनसे कहा कि फैक्ट्री के टैंक में सोने-चांदी के कण हो सकते हैं, जिन्हें निकाला जाए।वादा किया गया कि इस काम के लिए अतिरिक्त पैसे दिए जाएंगे। पहले दो लोग अंदर उतरे, दम घुटने लगा। उन्हें बचाने चार और लोग गए लेकिन छहों की वहीं मौत हो गई।
कानून तो बना, लेकिन अमल नहीं
भारत में 2013 में मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से मैला उठाना) पर कानूनन रोक लग चुकी है। 2014 से यह पूरी तरह गैरकानूनी है, और सरकारों को इसका पालन सुनिश्चित करना होता है। फिर भी, ऐसे हादसे लगातार हो रहे हैं।
कोलकाता और दिल्ली में भी मौतें
कुछ दिन पहले ही कोलकाता में 3 सफाईकर्मियों की मौत हुई जब एक नाली साफ करते हुए पाइप फट गया। उसी दिन दिल्ली के नरेला में 2 और मजदूर मारे गए, जब उन्हें जहरीले टैंक में बिना सुरक्षा उपकरण भेजा गया।
फरवरी से मई 2024: 20 मौतें
The Mooknayak की रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ फरवरी से मई 2024 के बीच, मध्य प्रदेश, दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों में कम से कम 20 सफाईकर्मी जान गंवा चुके हैं।
दलित और पिछड़े समुदाय सबसे ज़्यादा प्रभावित
Human Rights Watch (2014) की रिपोर्ट में बताया गया कि
सफाईकर्मी खासकर दलित और पिछड़े वर्गों से जुड़े लोग 20-20 शौचालय बिना किसी सुरक्षा के हाथ से साफ करते थे और कई बार उन्हें मजदूरी की जगह बासी खाना दिया जाता था। काम छोड़ने की बात पर उन्हें धमकियाँ मिलती थीं।
कानून है, लेकिन बदलाव नहीं
2013 के कानून के बाद भी दलितों और हाशिए पर खड़े समुदायों को आज भी जबरन इस खतरनाक काम में झोंका जा रहा है। न कोई सुरक्षा, न अधिकार और न ही इंसान समझने का व्यवहार। जब देश ऊंची इमारतें बना रहा है, तो क्या सबसे नीचले तबके की जान की कोई कीमत नहीं है?
ये सवाल हर नागरिक, हर सरकार से पूछा जाना चाहिए। क्योंकि विकास सिर्फ ऊँचाई में नहीं, बराबरी में भी मापा जाता है।