‘शक’ अब सबूत से बड़ा हो चला है: यूपी में गोरक्षा के नाम प
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद ज़िले का, के भोजपुर-पिलखुवा मार्ग पर स्थित गांव अमराला में बीती रात एक ट्रक को गाय का मांस ले जाने के शक में भीड़ ने घेर लिया। देखते ही देखते, ट्रक में तोड़फोड़ हुई, ड्राइवर-क्लीनर को बेरहमी से पीटा गया, और फिर ट्रक को आग के हवाले कर दिया गया।
कैसे शुरू हुआ यह पूरा बवाल?
मंगलवार रात करीब 9 बजे, हिंदू संगठनों को सूचना मिली कि एक ट्रक पिलखुवा से आ रहा है जिसमें गौमांस है। हिंदू युवा वाहिनी और बजरंग दल के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और गांव के कुछ लोगों के साथ ट्रक को रोक लिया। ट्रक के भीतर कथित ‘मांस’ को देखकर भीड़ उग्र हो गई और तोड़फोड़ व मारपीट शुरू कर दी।
जब तक पुलिस मौके पर पहुंची, भीड़ ट्रक में आग लगाने की तैयारी कर चुकी थी। पुलिस ने हालात संभालने की कोशिश की, मगर भीड़ पुलिस को ही आंखें दिखाने लगी। एक घंटे तक माहौल तनावपूर्ण रहा। भीड़ ने सड़क पर धरना दिया और पिलखुवा रोड को जाम कर दिया, जिससे भारी ट्रैफिक जाम लग गया।
क्या वाकई वो ‘गौमांस’ था?
इस सवाल का जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है। जो मांस ट्रक से बरामद हुआ, उसे पशु चिकित्सकों ने सील कर जांच के लिए भेजा है। यानी, अब तक ये पुष्टि नहीं हुई कि वह मांस वाकई गौवंश से जुड़ा था या नहीं।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि हाल ही में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां सिर्फ शक के आधार पर लोगों को मारा गया, और बाद में रिपोर्ट से पता चला कि मांस भैंसे का था, न कि गाय या बछड़े का।
अलीगढ़ में भी यही हुआ था…
कुछ दिन पहले अलीगढ़ में कदीम, अरबाज और अली नाम के तीन युवकों को भीड़ ने घेरकर पीटा, ये कहकर कि वे गाय का मांस लेकर जा रहे थे। मगर जब लैब रिपोर्ट आई तो मांस भैंसे का निकला, तब तक तीनों की हड्डियाँ टूट चुकी थीं, और वे अस्पताल में ज़िंदगी-मौत की लड़ाई लड़ रहे थे।
सबसे बड़ा सवाल: सूचना किसने दी? और क्यों?
जब भी ऐसा कोई मामला होता है, सबसे पहला सवाल यही उठता है:
- सूचना किसने दी?
- उसने क्या सबूत देखा?
- क्या उसने प्रशासन को पहले जानकारी दी?
- क्या ये सूचना गलत थी, या जानबूझकर फैलाई गई?
भीड़ ने यह मान लिया कि वह जो सोच रही है, वही सच है। बिना जांच, बिना सुनवाई और बिना कानूनी प्रक्रिया के, लोगों को पीटने और संपत्ति जलाने का हक भीड़ को किसने दिया?
जब पुलिस भी असहाय हो जाए…
इस पूरी घटना में पुलिस की भूमिका भी चिंता का विषय है। पुलिस मौके पर थी, मगर कुछ कर नहीं सकी। क्या यह इस बात का संकेत है कि भीड़ अब कानून से ऊपर हो गई है? या फिर ये सरकार की नीतियों का परिणाम है, जहां भीड़ को मूक समर्थन मिल रहा है?
ट्रैफिक जाम और आम जनता की परेशानी
करीब दो घंटे तक भोजपुर-पिलखुवा मार्ग पूरी तरह बंद रहा। एम्बुलेंस, स्कूल बसें, ऑफिस से लौट रहे लोग—सब फंसे रहे। मगर भीड़ को इसकी कोई परवाह नहीं थी। यह वही सड़क है जो दिल्ली–मेरठ को जोड़ती है। अब स्थानीय लोग डर के साए में हैं कि कहीं किसी दिन उन्हें भी शक के नाम पर पीट न दिया जाए।