पिछले कुछ दिनों में दुनिया की नज़रें एक बार फिर पश्चिम एशिया की ओर मुड़ गईं, जब इसराइल ने ईरान पर ‘ऑपरेशन राइज़िंग लॉयन’ के तहत बड़ा हमला कर दिया।ये हमला सिर्फ एक हमला नहीं था ये एक मैसेज था, एक रणनीति थी, और शायद एक बड़े युद्ध की शुरुआत भी। इस हमले में कई टॉप मिलिट्री लीडर्स मारे गए हैं। लेकिन सवाल ये है क्या ईरान वाकई इसराइल के लिए खतरा बन गया था? और इसराइल ने अब ही हमला क्यों किया?
ईरान पर बड़ा हमला
शुक्रवार सुबह इसराइली फौज ने ईरान के कई बड़े ठिकानों को टारगेट किया जिनमें आर्मी बेस, सरकारी इमारतें और न्यूक्लियर साइट्स शामिल थीं।इस हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख हुसैन सलामी और सेना के चीफ ऑफ स्टाफ मोहम्मद बाघेरी जैसे बड़े नेता मारे गए। कुछ ईरानी वैज्ञानिकों की भी मौत की खबर है। ईरानी सरकारी चैनल ने बताया कि कुल 78 लोग मारे गए जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इसराइल ने ये भी दावा किया कि उसकी खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ ने ईरान के अंदर घुसकर बहुत से अहम टारगेट की जानकारी पहले ही निकाल ली थी।
क्या ईरान बना रहा न्यूक्लियर बम
इसराइल का दावा है कि ईरान कुछ ही महीनों में न्यूक्लियर बम बना सकता है। लेकिन इंटरनेशनल एजेंसी IAEA का कहना है कि ईरान ने भले ही जांच में सहयोग नहीं किया, पर ऐसा कोई साफ़ सबूत नहीं है कि वो हथियार बना रहा है।यहां तक कि अमेरिका की अपनी रिपोर्ट भी कहती है कि ईरान फिलहाल न्यूक्लियर बम नहीं बना रहा और उसने 2003 में ये प्रोग्राम रोक दिया था।
इसराइल ने हमला क्यों किया
इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू पहले भी कह चुके हैं कि ईरान ‘एक ऑक्टोपस’ की तरह है जिसके हाथ यमन के हूती, लेबनान का हिजबुल्लाह और ग़ज़ा का हमास हैं। ग़ज़ा में युद्ध के बाद इसराइल को लगा कि उसके दुश्मन कमजोर हो गए हैं – और यही सही मौका है ईरान पर वार करने का। दूसरी तरफ अमेरिका में ऐसा राष्ट्रपति है जो इसराइल के साथ खड़ा है।इसराइल को ये भी डर था कि ईरान अपने कुछ यूरेनियम संवर्धन प्रोजेक्ट्स को ज़मीन के अंदर शिफ्ट कर रहा है, जिसे बाद में टारगेट करना मुश्किल होगा। तो इसराइल ने सोचा “अगर हमला करना है, तो अब ही सही मौका है।”
हमला राजनीतिक फायदे के लिए
हालांकि कई लोगों का मानना है कि नेतन्याहू ने ये हमला अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया है। उन पर करप्शन के केस चल रहे हैं और उनकी सरकार भी लड़खड़ा रही थी।हमला करके उन्होंने विपक्ष को भी अपने साथ कर लिया। यहां तक कि जो लोग पहले उनके खिलाफ थे, वो भी इस हमले का समर्थन कर रहे हैं।
इजराइल ने तोड़े अंतरराष्ट्रीय कानून
लेकिन इस हमले को लेकर कई इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसराइल का ये हमला अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ है। क्योंकि आत्मरक्षा का हक तभी होता है जब सामने से हमला हुआ हो और ईरान की तरफ से कोई सीधा हमला नहीं हुआ था।बस शक की बुनियाद पर हमला करना UN के चार्टर में सही नहीं माना जाता।
अब आगे क्या हो सकता है?
अगर ईरान की सत्ता इस हमले से बच जाती है, तो वो और तेज़ी से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो सऊदी अरब, तुर्की और मिस्र जैसे देश भी न्यूक्लियर रेस में कूद सकते हैं। यू तो अमेरिका खुले तौर पर इस हमले में शामिल नहीं है, लेकिन इसराइल का सबसे बड़ा सपोर्टर वही है।
अमेरिका का ये कहना कि “हम शामिल नहीं हैं” शायद ईरान को संतुष्ट न करे और अगर ईरान ने अमेरिकी ठिकानों पर हमला किया, तो पूरा मिडल ईस्ट युद्ध में खिंच सकता है।