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मोदी के तीसरे कार्यकाल में मुस्लिम निशाने पर,  रिपोर्ट में खुलासा

भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला साल नफरत की घटनाओं में तेज़ बढ़ोतरी लेकर आया है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, 7 जून 2024 से 7 जून 2025 के बीच देश में करीब 947 नफरत से जुड़ी घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें सबसे ज़्यादा शिकार बने हैं मुस्लिम और ईसाई समुदाय। यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है। यह उन लोगों की कहानी है, जिनकी आहें कहीं दर्ज नहीं होतीं। जिनका कसूर सिर्फ इतना था कि वो एक मुसलमान थे, या एक ईसाई। यह वो साल रहा जब नफरत ने धर्म का लिबास पहन लिया और इंसानियत का दम घोंट दिया।

क्या कहती है रिपोर्ट?

यह रिपोर्ट Association for Protection of Civil Rights और Quill Foundation ने मिलकर तैयार की है। इसमें बताया गया है कि एक साल के भीतर:

  • 947 कुल घटनाएं दर्ज हुईं
  • इनमें से 602 मामले हेट क्राइम के थे
  • और 345 घटनाएं हेट स्पीच यानी नफरत भरे भाषणों से जुड़ी थीं

मुसलमानों के खिलाफ हिंसा सबसे अधिक रही।
419 घटनाओं में 1,460 मुस्लिम प्रभावित हुए, जिनमें से 25 की जान चली गई।
वहीं ईसाई समुदाय पर 85 घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 1,504 लोग प्रभावित हुए।

नफरत का जिम्मेदार कौन?

रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि इन घटनाओं में कई बार बीजेपी से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं का नाम सामने आया।

  • 178 हेट स्पीच सीधे तौर पर बीजेपी नेताओं, मुख्यमंत्रियों, एक राज्यपाल और यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी से जुड़े पाए गए।
  • उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड — ये चारों राज्य, जहां बीजेपी की सरकारें हैं — वहां सबसे ज़्यादा घटनाएं हुईं।

रिपोर्ट यह भी कहती है कि चुनावी माहौल के दौरान नफरत से जुड़ी घटनाएं और ज़्यादा बढ़ जाती हैं।
गो-हत्या के नाम पर हमले, चर्चों और मस्जिदों पर हमले, मुस्लिम दुकानों और व्यापारियों का बहिष्कार जैसी घटनाएं बढ़ी हैं।

बच्चे और बुज़ुर्ग भी नहीं बचे

इस हिंसा की आग में मासूम बच्चे और बुज़ुर्ग भी झुलसे हैं।
रिपोर्ट बताती है कि

  • 32 घटनाएं बच्चों के खिलाफ थीं
  • और 10 घटनाएं बुज़ुर्गों के खिलाफ — जिनमें से ज़्यादातर मुसलमान थे।

इन घटनाओं में सबसे चिंताजनक बात ये रही कि सिर्फ 13% मामलों में FIR दर्ज की गई।
यानी कि 87% मामलों में कोई कार्रवाई ही नहीं हुई — न कोई पुलिस केस, न कोई कानूनी प्रक्रिया।
इससे यह साफ होता है कि नफरत बढ़ रही है लेकिन इंसाफ नहीं।

रोकथाम की ज़रूरत, सिस्टम की मांग

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर इन घटनाओं को संस्थागत रूप से न रोका गया, तो इसका असर न सिर्फ अल्पसंख्यकों पर बल्कि पूरे देश पर पड़ेगा। “हेट क्राइम कभी अकेले नहीं आते,” रिपोर्ट कहती है, “वो समाज को तोड़ते हैं, भरोसे को मिटाते हैं, और आने वाली पीढ़ियों को डर की विरासत सौंपते हैं।”

जब सत्ता चुप हो जाए, तो जनता को बोलना पड़ता है

आज जब सत्ता के ऊँचे मंचों से नफरत की भाषा बोली जाती है,तो सड़कों पर उसका असर खून और हिंसा के रूप में दिखता है।जब नेता नफरत को राष्ट्रभक्ति की तरह पेश करते हैं,तो भीड़ उसे आदेश समझती है।और जब कानून चुप रहता है,तो अल्पसंख्यक सिर्फ डरे नहीं रहते  बल्कि धीरे-धीरे अपने ही देश में बेगाने हो जाते हैं।यह किसी एक धर्म या समुदाय की लड़ाई नहीं है। यह उस भारत की लड़ाई है, जो गांधी के आदर्शों और संविधान की आत्मा से बना था  जो सभी के लिए था, सभी का था।

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