बिहार में मुसलमान नेतृत्व को लेकर फिर से बहस शुरू हो गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने हाल ही में कहा कि अगर तेजस्वी यादव बिहार का मुख्यमंत्री किसी मुसलमान को बनाते हैं, तो वे बिना शर्त उनका समर्थन करेंगे। चिराग का यह बयान सिर्फ एक सियासी दांव नहीं बल्कि बहुजन-मुस्लिम एकता को नेतृत्व स्तर पर हकीकत बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
2005 में भी उठी थी ऐसी मांग
यह पहला मौका नहीं है जब पासवान परिवार ने इस तरह की मांग की हो। 2005 में चिराग के पिता रामविलास पासवान ने भी लालू प्रसाद यादव से अपील की थी कि वे किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री बनाएं, लेकिन उस वक्त लालू ने यह मांग ठुकरा दी थी।
MANUU के पूर्व छात्र नेताओं की अपील
अब हैदराबाद की मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) के पूर्व छात्र नेताओं ने भी एक साझा बयान जारी किया है। उन्होंने कहा कि बिहार में मुसलमानों को असली सत्ता में भागीदारी मिलनी चाहिए। इन नेताओं ने मांग की है कि किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए और साथ ही 40 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में टिकट दिया जाए, क्योंकि बिहार में मुसलमानों की आबादी 17% से ज्यादा है।
“सिर्फ वोटर नहीं, नेता भी बनना चाहते हैं”
MANUU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद फैजान ने कहा, “मुसलमान अब सिर्फ वोटर नहीं रहना चाहते, वे नेतृत्व के लिए तैयार हैं। उपमुख्यमंत्री का पद और 40 टिकट — यही न्यूनतम इंसाफ है जिसकी हम बात कर रहे हैं।”
पूर्व महासचिव फैजान इक़बाल ने कहा, “सिर्फ समर्थन से काम नहीं चलेगा, प्रतिनिधित्व जरूरी है। अगर तेजस्वी सच में संविधान और सामाजिक न्याय पर भरोसा करते हैं, तो मुसलमानों को निर्णायक भूमिका देनी होगी।”
पूर्व उपाध्यक्ष मोहम्मद अबूहमजा ने कहा, “रामविलास पासवान की 2005 वाली मांग आज और भी ज़्यादा जरूरी हो गई है। सवाल है कि तेजस्वी इतिहास दोहराएंगे या नया इतिहास बनाएंगे?”
मुस्लिम महिलाओं और युवाओं का नेतृत्व
पूर्व जॉइंट सेक्रेटरी शगुफ्ता इक़बाल ने कहा, “नेतृत्व वहीं से आता है जहां सबसे ज़्यादा तकलीफ हो। मुसलमान समुदाय तैयार है, बस दरवाज़ा खोलने की ज़रूरत है।”
अनम जहान ने कहा, “सामाजिक न्याय केवल नारा नहीं, बल्कि पद और सीटों से आता है। मुस्लिम महिलाओं को प्रेरणा चाहिए, और वह नेतृत्व से ही आएगी।”
मारिया हिदायत ने कहा, “मुस्लिम युवा अब सिर्फ पोस्टर में दिखना नहीं चाहते, वे पॉलिसी बनाने वाले बनना चाहते हैं। उपमुख्यमंत्री पद और 40 टिकट ही भरोसा लौटा सकते हैं।”
आगे क्या?
बिहार में 17% से ज़्यादा मुसलमान आबादी है और 40 से ज़्यादा विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव भी माना जाता है। फिर भी सरकार में उनका प्रतिनिधित्व ज़्यादातर प्रतीकात्मक ही रहा है। महागठबंधन में शामिल राजद ने अभी तक कोई मुसलमान उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया।
अब बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति एक नए मोड़ पर आ गई है। अगर बहुजन-मुस्लिम गठजोड़ को और मज़बूत करना है तो नेतृत्व में भी हिस्सेदारी देनी होगी। तेजस्वी यादव के पास अब मौका है कि वे मुसलमानों को सिर्फ भीड़ या पोस्टर का हिस्सा न बनाकर, असली नीति बनाने में भागीदार बनाएं।