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पुडुकोट्टई में मंदिर में दलितों को विभूति देने से इनकार, भेदभाव के खिलाफ शिकायत दर्ज

पुडुकोट्टई ज़िले में दलितों के साथ मंदिर में भेदभाव का मामला सामने आया है। वडवलम पंचायत के कुछ दलित निवासियों ने आरोप लगाया है कि 6 जुलाई को कालयुग मय्या अय्यनार मंदिर में पूजा के दौरान उन्हें विभूति (राख) देने से जानबूझकर इनकार किया गया। यह मंदिर हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) विभाग के अधीन आता है।

शिकायत के अनुसार, जब मंदिर में दीपाराधना पूजा हुई तो पुजारी ने अन्य सभी भक्तों को विभूति दी, लेकिन दलितों को नज़रअंदाज़ कर दिया। जब उन्होंने सवाल किया तो पुजारी ने कथित रूप से कहा, “हम तुम जैसे लोगों को विभूति नहीं दे सकते।” इस घटना के बाद पीड़ितों ने संबत्तिविदुथी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई।

वडवलम के निवासी एम. पनीस्वामी ने बताया कि यह कोई नई बात नहीं है। उनके अनुसार, “हम मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते, न ही पूजा में भाग ले सकते हैं। यहां तक कि हमें आम लोगों के साथ एक ही छांव में बैठने की भी इजाज़त नहीं दी जाती।” उन्होंने कहा कि ये भेदभाव पीढ़ियों से चलता आ रहा है।

सोमवार को दलित निवासियों ने विदुथलाई चिरुथैगल काची (VCK) पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ जिला कलेक्टर एम. अरुणा को ज्ञापन सौंपा। उन्होंने मांग की कि उन्हें मंदिर में प्रवेश का अधिकार मिले और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने दिया जाए। इसके साथ ही पुजारियों पर एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई करने और मंदिर ट्रस्टी बोर्ड में अनुसूचित जाति समुदाय से एक सदस्य को शामिल करने की भी मांग रखी गई।

निवासियों ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें मंदिर त्योहारों के दौरान दूध के कलश ले जाने, मंडगापडी (धार्मिक चढ़ावा) में भाग लेने और पानी के स्टॉल लगाने तक से रोका जाता है। मंदिर के पास एक “सामाजिक सीमा” तय की गई है जिसे वे पार नहीं कर सकते।

इस मुद्दे को लेकर VCK के तिरुमारावन (थंजावूर-पुडुकोट्टई ज़ोनल सचिव) ने भी आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ मंदिर प्रवेश की बात नहीं है, बल्कि दलितों की गरिमा और समानता की लड़ाई है। उन्होंने प्रशासन से अपील की कि 8 जुलाई को होने वाली रथ यात्रा के दौरान दलितों को सुरक्षा के साथ मंदिर में प्रवेश दिलाया जाए।

इस घटना के बाद अलनगुडी डीएसपी और जिला प्रशासन ने एक शांति बैठक बुलाई। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दलितों को रथ यात्रा के दौरान मंदिर में प्रवेश दिया जाएगा और किसी भी तरह की रुकावट पर सख़्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, अब तक पुजारी गणेश और संबन्धम गुरुक्कल के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है।

वहीं, दूसरी ओर प्रभुत्वशाली जाति से आने वाले अ. अंबुसेल्वम ने इन आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने दावा किया कि “किसी को रोका नहीं गया, बल्कि इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है।”यह घटना केवल धार्मिक भेदभाव नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और सम्मान की मांग का प्रतीक बन गई है। दलित समुदाय अब सिर्फ पूजा की इजाज़त नहीं चाहता वो अपने अधिकार, आत्मसम्मान और बराबरी की ज़िंदगी चाहता है।

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