गाज़ा पट्टी, एक ऐसा इलाक़ा जो पिछले कई महीनों से खून, बारूद और बर्बादी का मैदान बना हुआ है. हर कोना तबाही की तस्वीर है, बच्चे भूखे हैं, मां-बाप बेघर हैं, और अस्पतालों में दवा तो दूर, छत भी नहीं बची. अब इस सबके बीच एक और दुखद खबर सामने आई है जहां यूनिसेफ ने गाज़ा में अपने 21 कुपोषण केंद्र बंद कर दिए. बात सुनने में जितनी सीधी लगती है, असल में उसके पीछे की दास्तान उतनी ही डरावनी है. लाखों बच्चे अब भूख से मरने की कगार पर हैं.
कैसे टूटा ये कहर?
गाज़ा में इज़राइल की बमबारी ने वैसे तो हर चीज़ को तबाह कर डाला – स्कूल, अस्पताल, घर, मस्जिदें – कुछ नहीं छोड़ा. लेकिन जब गोली-बारूद से बच भी गए मासूम, तो भूख और बीमारी ने उन्हें घेर लिया. यूनिसेफ ने यहाँ 21 कुपोषण केंद्र खोले थे जहाँ छोटे बच्चों को पोषण वाला खाना, दूध, दवाई, और इलाज मिलता था, लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि उन सेंटरों को बंद करना पड़ा. इन बंद सेंटरों का मतलब ये नहीं कि कोई काम रोक दिया गया, मतलब ये है कि अब दस लाख से ज़्यादा बच्चों के पास जिंदा रहने का भी ज़रिया नहीं बचा.
8000 बच्चे गाज़ा में कुपोषण से पीड़ित थे
यूनाइटेड नेशन के मुताबिक कम से कम 8000 बच्चे गाज़ा में कुपोषण से पीड़ित थे, जिनमें से 1600 की हालत तो बेहद नाज़ुक थी. इनको एक-एक दिन पोषण और दवाई की ज़रूरत होती थी. लेकिन जब बम गिरे, तो नर्स भागीं, डॉक्टर मरे, और सप्लाई बंद हो गई. अब वही बच्चे इलाज से वंचित हैं. यूनिसेफ का साफ कहना है – “अगर अगले कुछ दिनों में इलाज शुरू नहीं हुआ, तो कम से कम 3 हज़ार बच्चों की जान जा सकती है” सोचिए, वो बच्चा जिसकी उम्र महज़ डेढ़-दो साल है, ये भूखे है, बीमार है, और माँ की गोद में तड़प रहे है. पर कोई कुछ कर नहीं पा रहा.
अस्पतालों का हाल, खुद बीमार हो चुके हैं
गाज़ा में जो अस्पताल कभी पूरे इलाके का सहारा थे, वो अब खुद ही लाचार हो चुके हैं. बिजली नहीं है, पानी नहीं है, दवाइयाँ खत्म हैं, और जो डॉक्टर थे, वो या तो शहीद हो चुके हैं या फिर जान बचाकर भाग चुके हैं. यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट बताती है कि तीन में से एक Nutrition Stabilization Center बंद हो गए है, बाकी दो भी कभी भी ठप्प हो सकते हैं. अस्पतालों में ना ही ICU बचा है, ना ऑक्सीजन, ना बेबी वार्ड. जो माँएँ अपने बच्चों को गोद में लेकर भागी थीं, अब वहीं हॉस्पिटल के फर्श पर रोती हैं.
अब गाज़ा में हाल ये है कि बच्चे भूख से भी मर रहे हैं और बीमारियों से भी. डायरिया, निमोनिया, टीबी – ये सब अब आम हो चुके हैं. और वो भी ऐसे बच्चों में, जिनका वज़न आधे से भी कम हो गया है. यूनिसेफ का कहना है कि आने वाले कुछ हफ्तों में करीब 10,000 नए बच्चे गंभीर कुपोषण से ग्रसित हो सकते हैं.
और बात यहीं नहीं रुकती, जो बच्चे कुपोषण से नहीं मरेंगे, वो शायद गंदे पानी या गंदगी से फैली बीमारियों से मर जाएँगे. क्योंकि गाज़ा में साफ पानी अब मिल ही नहीं रहा. गाज़ा में सिर्फ बच्चे ही नहीं, गर्भवती महिलाएँ और नवजात शिशु भी बेहद खराब हालत में हैं. अब सोचिए माँ को खाना नहीं, दवा नहीं, शरीर में ताकत नहीं, तो ये किस हालत में बच्चे को जन्म देगी? और जो नवजात आ भी गए, उनके लिए ना टीकाकरण हो रहा, ना ही सही देखभाल.
सहायता पहुँचने से पहले ही रोक दी जा रही है
यूनिसेफ और दूसरे संगठन गाज़ा में मदद पहुँचाना चाहते हैं, लेकिन इसराइल की क्रूर नीतियाँ ऐसी हैं कि मदद पहुँच ही नहीं पा रही. सड़कों पर चेकपॉइंट हैं, ट्रक रुक जाते हैं, खाना सड़ जाता है, दवाइयाँ फंस जाती हैं, और लोग मानवीय सहायता के बिना तड़प तड़प कर मर रहे है. यूनिसेफ का मानना है कि अगर हम मदद नहीं भेज पाए, तो टीकाकरण रुक जाएगा, इलाज बंद हो जाएगा और नवजातों की जानें जाती रहेंगी.
मुस्लिम देशों ने मिलके गाज़ा को दोबारा बसाने का फैसला लिया
गाज़ा में जो हाल है, वो शायद नरक से भी बदतर है. यहां के बच्चे किसी देश के खिलाफ लड़ नहीं रहे, ना कोई हथियार उठाए हैं, फिर भी उनके हिस्से में भूख, बम और बेबसी ही आ रही है. लेकिन इन सब के बीच मुस्लिम देशों ने मिलके गाज़ा को दोबारा बसाने का फैसला लिया और कोई मामूली रकम नहीं, पूरे 53 अरब डॉलर खर्च करने की योजना बनाई. मिस्र ने पहल की शुरुआत की और इसके पीछे पूरा अरब देश खड़ा हो गया खासकर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), क़तर, कुवैत और बाकी मुस्लिम देश
इन सबने मिलके अरब लीग की मीटिंग में इस प्लान को मंज़ूरी दी. और कहा “हम गाज़ा को दोबारा बनाएंगे, लेकिन इस बार नई सोच और नया सिस्टम लेकर आएंगे”. ऐसे में गाज़ा में जो आम लोग हैं, जिनका कोई कसूर नहीं, जिनके घर उड़ गए, बच्चे मर गए, और ज़िंदगी सड़क पर आ गई. उनके लिए ये प्लान उम्मीद की एक किरण है। अगर सब ठीक से चला, तो आने वाले 5 सालों में गाज़ा फिर से खड़ा हो जाएगा, और वो भी अपने पैरों पर