हैदराबाद के सांसद और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। ओवैसी का कहना है कि चुनाव आयोग (ECI) बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुपचाप NRC लागू कर रहा है।
ओवैसी ने कहा कि बिहार में मतदाता पंजीकरण के नए नियम इतने सख्त बना दिए गए हैं कि हजारों गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग, खासकर मुस्लिम और दलित समुदाय के लोग, वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। ओवैसी के मुताबिक, सीमांचल जैसे इलाकों में बाढ़ से प्रभावित लोगों के लिए मां-बाप के जन्म प्रमाणपत्र दिखाना नामुमकिन है।
एक पोस्ट में ओवैसी ने लिखा, “चुनाव आयोग पीछे के दरवाजे से NRC लागू कर रहा है। अब वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए सिर्फ अपना नहीं, बल्कि अपने माता-पिता का भी जन्म प्रमाणपत्र देना होगा। सीमांचल के बाढ़ पीड़ित लोग ये कागज कहां से लाएंगे?”
ओवैसी ने इसे गरीबों के साथ “क्रूर मजाक” करार दिया। उन्होंने कहा कि खुद सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में केवल 75% जन्म पंजीकरण ही होता है, और उसमें भी कई जगह गलतियां पाई जाती हैं।
दरअसल, NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स एक विवादित प्रक्रिया है, जिसमें नागरिकता की जांच की जाती है। असम में 2019 में NRC की अंतिम सूची आई थी, जिसमें 19 लाख लोगों का नाम छूट गया था। इसके बाद खासकर मुस्लिम और बांग्ला बोलने वाले समुदायों में डर और भ्रम फैल गया था।
ओवैसी ने चेतावनी दी कि बिहार के ये नए वोटर रूल्स “लाखों लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित कर सकते हैं” और इससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि “इससे लोगों का लोकतंत्र पर भरोसा टूटेगा।”
फिलहाल चुनाव आयोग ने वोटर आईडी बदलाव को NRC से जोड़ने की कोई पुष्टि नहीं की है। लेकिन कांग्रेस और राजद जैसी विपक्षी पार्टियों ने भी इस पर चिंता जताई है और कमजोर मतदाताओं की सुरक्षा के लिए स्पष्टीकरण मांगा है।