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4 साल जेल, 70 सुनवाई… अब बिहार चुनाव में उतरेंगे शरजील इमाम

चार साल जेल में बिताने के बाद… एक रिसर्च स्टूडेंट, जिसे कभी देशद्रोही और आतंकी कहा गया… अब बिहार की राजनीति में कदम रखने की तैयारी कर रहा है। शरजील इमाम – वो नाम जो 2019-20 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ देशभर में हुए ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन का चेहरा बना। लेकिन आज तक अदालतों में उनका केस अटका हुआ है। और अब खबर है कि वो बिहार विधानसभा चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ सकते हैं। क्या ये लोकतंत्र की जीत है, या सिस्टम पर सवाल?

शरजील इमाम, बिहार के जहानाबाद जिले के काको गांव से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई की और सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करने के बाद जेएनयू से पीएचडी शुरू की।2019 में संसद में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पास हुआ और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की बात उठी। इसी के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में 100 दिन लंबा शांतिपूर्ण धरना शुरू हुआ, जिसका विचार सबसे पहले शरजील ने रखा था। इस आंदोलन ने देशभर में लाखों लोगों को जोड़ दिया।

जनवरी 2020 में शरजील के खिलाफ पांच राज्यों  दिल्ली, उत्तर प्रदेश, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में एफआईआर दर्ज हुई।उन पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने भाषणों में सड़क जाम करने की बात कही, जिसे पुलिस ने “देशविरोधी” और “उकसाने वाला” बताया।दिल्ली पुलिस ने उन्हें 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया।बाद में दिल्ली दंगे की साजिश केस (UAPA के तहत) में भी उनका नाम जोड़ा गया, जबकि वो पहले ही जेल में थे।

ये वो केस है, जिसकी वजह से आज भी शरजील जेल में हैं।

  • 70 बार उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई हुई।
  • 7 अलग-अलग बेंच ने केस सुना।
  • 3 जज खुद को मामले से अलग कर चुके हैं।
  • 2 साल 9 महीने से उनकी UAPA वाली जमानत अटकी हुई है।
  • बाकी 6 मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है**, सिर्फ ये एक केस बचा है।

संयुक्त राष्ट्र के कई मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि इन गिरफ्तारियों का मकसद सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को डराना है।शरजील इमाम अब बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।वो किशनगंज जिले की बहादुरगंज सीट से निर्दलीय उम्मीदवार बन सकते हैं। इस सीट पर 2020 में एआईएमआईएम के मोहम्मद अंजार नयीमी जीते थे, जो अब राजद में शामिल हो गए हैं।

बिहार में चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने की उम्मीद है।अगर शरजील जेल से चुनाव लड़ते हैं, तो ये भारतीय राजनीति में एक बड़ा सवाल खड़ा करेगा  क्या कोई व्यक्ति जिसे कोर्ट ने अब तक दोषी साबित नहीं किया, मगर जेल में रखा गया है, लोकतंत्र में चुनाव लड़ सकता है और जनता को अपनी आवाज़ दे सकता है?

शरजील ने जेल से लिखे एक आर्टिकल में कहा – मैं जानता था कि सरकार विरोध करने की सज़ा देगी, इसलिए जेल जाने के लिए तैयार था। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि दंगों का आरोप मुझ पर लगेगा, वो भी एक महीने बाद हुए दंगों का, जब मैं पहले ही जेल में था।

उन्होंने ग़ालिब का शेर लिखते हुए कहा: क्यों भागेंगे वफ़ा की ज़ंजीरों से, जब मोहब्बत में बंधे लोग भी भागते हैं? उनके लिए सबसे बड़ी तकलीफ है उनकी बूढ़ी और बीमार मां, जिन्हें वो और उनका भाई ही संभालते हैं। पिता की मौत नौ साल पहले हो चुकी थी। बाकी समय वो किताबें पढ़ते हैं और खुद को संभालते हैं।

भारत में कानून कहता है “जब तक अपराध साबित न हो, हर व्यक्ति निर्दोष है। फिर क्यों शरजील जैसे लोग सालों जेल में रहते हैं, जबकि केस खत्म नहीं हुआ? 70 सुनवाई, 7 बेंच, 3 जजों का हटना – क्या ये न्यायिक प्रक्रिया है या देरी से मिलता न्याय सिर्फ़ सज़ा का नया रूप बन गया है? संयुक्त राष्ट्र समेत कई संस्थाएं कह चुकी हैं कि ऐसे केस लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सीधा हमला हैं।

शरजील इमाम चुनाव लड़ें या न लड़ें, ये जनता तय करेगी। लेकिन ये केस हमें सोचने पर मजबूर करता है क्या विरोध करना अब अपराध है? क्या कानून का इस्तेमाल सच में न्याय के लिए हो रहा है या सिर्फ डर दिखाने के लिए? जब अदालतों के फैसले सालों तक लटके रहें और जेलें भरी रहें, तब लोकतंत्र का असली चेहरा कौन देखेगा?

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