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भूख से मरते बच्चे Gaza में कुपोषण की भयावह सच्चाई UNRWA रिपोर्ट

सोचिए… आपकी आंखों के सामने कोई बच्चा भूख से तड़प रहा हो, और आप सिर्फ देख रहे हों — क्योंकि मदद अंदर जा ही नहीं पा रही।ये कोई फिल्म नहीं है, ये ग़ाज़ा की सच्चाई है।संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNRWA के मुताबिक, ग़ाज़ा में हर 10 में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है। यानि, हर दसवां बच्चा  भूख से बीमार!

UNRWA के प्रमुख फिलिप लाजारिनी कहते हैं, ये हालत इंसानों की बनाई हुई है, और जानबूझ कर बनाई गई है।जंग से पहले ग़ाज़ा में कुपोषण बहुत कम था। लेकिन अब हालत इतनी खराब है कि बच्चों को मिलने वाला खाना, दवाइयाँ और जरूरी पोषण भी रोक दिया गया है। 6 हज़ार से ज़्यादा UNRWA ट्रक खाने, दवाइयों और साबुन जैसे बेसिक सामान के साथ बॉर्डर पर अटके हुए हैं लेकिन उन्हें ग़ाज़ा में घुसने की इजाज़त नहीं मिल रही। और इस बीच… 870 से ज़्यादा लोग भूख से तड़पते हुए मारे जा चुके हैं  खाना ढूंढते हुए।

जनवरी से अब तक UNRWA ने 2.4 लाख से ज़्यादा बच्चों की मेडिकल जांच की है। उनमें से बहुत बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार निकले। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट कहती है  मार्च से मई के बीच ही 50 से ज़्यादा बच्चे सिर्फ भूख से मर चुके हैं। UNRWA की डायरेक्टर जुलिएट टोउमा बताती हैं  “एक नर्स ने मुझसे कहा, मैं कुपोषण के बारे में सिर्फ किताबों में पढ़ता था, अब वो बच्चों की आंखों में देखता हूं।10 जुलाई को एक क्लीनिक के बाहर 8 बच्चे पोषण सहायता के लिए लाइन में खड़े थे… और वहीं पर एक एयरस्ट्राइक हुई… सभी मारे गए।

सोचिए, सिर्फ दूध पीने की उम्र के बच्चे… उनकी मौत सिर्फ इसलिए हो रही है  क्योंकि दुनिया अब भी चुप है।अब, ग़ाज़ा में एक नया मॉडल लागू किया गया है – “Gaza Humanitarian Foundation” जिसके ज़रिए अमेरिका और इज़राइल मिलकर प्राइवेट मिलिट्री कंपनियों से राहत पहुंचा रहे हैं, जबकि UNRWA को पूरे इलाके से बैन कर दिया गया है। UNRWA कहती है “अगर अभी सीज़फायर नहीं हुआ… तो और भी मौतें होंगी। लेकिन सवाल ये है क्या दुनिया वाकई बच्चों को बचाना चाहती है?

7 महीने का छोटा बच्चा  सलाम  पिछले हफ्ते भूख से मर गया।और ऐसे हजारों ‘सलाम’ हैं, जिनके लिए अब भी कोई रास्ता नहीं।21वीं सदी में… जहां टेक्नोलॉजी से हम चाँद पर पहुंच रहे हैं, वहीं एक इलाका ऐसा भी है  जहां बच्चे भूख से मर रहे हैं। और ये सब रोका जा सकता है… अगर हम वाकई चाहें।

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