साल 2025 की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश के अलग-अलग राज्यों में लोगों को इंसाफ मिलने में थोड़ा सुधार हुआ है. इस रिपोर्ट में पुलिस, जेल, कानूनी मदद, अदालतें और लोगों के अधिकारों जैसी चीजों को देखा गया है. अच्छी बात ये है कि दक्षिण भारत के राज्य, जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु, इस मामले में सबसे आगे हैं.
उत्तर भारत में हुआ न के बराबर सुधार
लेकिन चिंता की बात ये है कि उत्तर भारत के कई राज्यों में इंसाफ दिलाने के मामले में बहुत कम सुधार हुआ है, और कुछ राज्यों का हाल तो औसत से भी बुरा है. पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में लोगों को इंसाफ मिलने में काफी दिक्कतें पेश आई हैं.
जानकारों का कहना है कि उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों की सोच में फर्क है. उत्तर भारत में अगर कोई गलती करता है तो उसे सजा मिलने का डर कम होता है. वहीं, दक्षिण के राज्यों ने पुलिस को आधुनिक बनाने, अदालती काम को ऑनलाइन करने और पुलिस व अदालतों में महिलाओं को ज्यादा मौका देने जैसे कदम उठाए हैं, जिससे लोगों को ज्यादा मदद मिल रही है.
पुलिस में महिलाओं की संख्या कम
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, सरकार के ही आंकड़ों से बनाई गई है. इसका मकसद है कि सरकार इस रिपोर्ट को देखकर न्याय दिलाने के तरीके में सुधार करे. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ज्यादातर राज्यों ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण तो तय किया है, लेकिन कर्नाटक को छोड़कर कोई भी राज्य उस आरक्षण को पूरी तरह से लागू नहीं कर पाया है. पुलिस में भी महिलाओं की संख्या बहुत कम है, जबकि लक्ष्य 33% है और अभी सिर्फ 11.8% महिलाएं ही पुलिस में हैं.
पुलिस स्टेशनों पर महिलाओं की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जाता. बिहार में तो घरेलू हिंसा के मामले भी दर्ज नहीं होते, जबकि सबको पता है कि वहां यह होता है. महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने में भी बहुत परेशानी होती है, क्योंकि पुलिस वाले बहाने बनाते हैं.
पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी का कहना है कि असली बदलाव तभी आएगा जब महिलाएं बड़े पदों पर बैठकर फैसले लेंगी, न कि सिर्फ गिनती पूरी करने के लिए उन्हें भर्ती किया जाए। उनका मानना है कि अभी भी हमारे समाज में पुरुषों का दबदबा है।
अदालतों में कर्मचारियों की कमी
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पुलिस स्टेशनों और अदालतों में कर्मचारियों की बहुत कमी है. पुलिस में कांस्टेबल और अधिकारी के कई पद खाली हैं. अदालतों में भी जजों की संख्या बहुत कम है, जिसके कारण जजों पर बहुत ज्यादा काम का बोझ है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में तो एक-एक जज पर हजारों मामले हैं.
हमारे देश की ज्यादातर जेलों में जितने कैदी रखने की जगह है, उससे कहीं ज्यादा कैदी भरे हुए हैं. उनमें से तो ज्यादातर ऐसे हैं जिनका अभी तक कोई फैसला ही नहीं आया है. कुछ जेलों में तो चार गुना ज्यादा कैदी हैं.
जानकारों का मानना है कि न्याय व्यवस्था कैसे काम करेगी, यह सरकार पर निर्भर करता है. अगर सरकार चाहे तो सुधार हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज का कहना है कि अगर सरकार और कानून ठीक से काम नहीं करते हैं तो अदालतों को दखल देना चाहिए.
इंसाफ दिलाने का वादा अधूरा
कुल मिलाकर, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट दिखाती है कि हमारे देश में सबको बराबर इंसाफ दिलाने का वादा अभी भी अधूरा है. अगर हम सच में एक ऐसा देश बनना चाहते हैं जहां सबके लिए न्याय हो, तो हमें अपनी सोच बदलनी होगी और हर स्तर पर सुधार करने होंगे. डिजिटल तकनीक और सही योजना बनाकर हम अपनी न्याय व्यवस्था को बेहतर बना सकते हैं.