14 मई 2025 को Justice Bhushan Ramkrishna Gavai ने भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice of India) का पदभार ग्रहण कर लिया। राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक गरिमामय समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और अन्य उच्च पदस्थ गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।
न्यायमूर्ति गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो एक दिन पहले ही सेवानिवृत्त हुए थे। 30 अप्रैल 2025 को केंद्रीय कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी, जिसके पीछे 16 अप्रैल को तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना की ओर से किया गया नामांकन था।
वरिष्ठता और परंपरा के आधार पर चयन
भारत की न्यायिक परंपरा के अनुसार, वर्तमान प्रधान न्यायाधीश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करते हैं। न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठता क्रम में सबसे ऊपर थे, इसी कारण उनका चयन स्वाभाविक था। कानून मंत्रालय ने इस प्रक्रिया के तहत तत्कालीन सीजेआई से उत्तराधिकारी के नाम की आधिकारिक अनुशंसा भी मांगी थी।
न्यायमूर्ति गवई का न्यायिक सफर
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत की शुरुआत की थी। उन्होंने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के तौर पर सेवा दी। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक वे बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक रहे।
जनवरी 2000 में वे नागपुर बेंच के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक बने।
नवंबर 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए।
नवंबर 2005 में स्थायी न्यायाधीश बनाए गए।
24 मई 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
इतिहास में विशेष स्थान
जस्टिस गवई अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले दूसरे प्रधान न्यायाधीश हैं। उनसे पहले न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन 2007 से 2010 तक इस पद पर रह चुके हैं। इसके साथ ही वे पहले बौद्ध हैं, जिन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश पद की जिम्मेदारी संभाली है।
कुछ ऐतिहासिक फैसले जिनमें जस्टिस गवई रहे अग्रणी भूमिका में:
1. राजीव गांधी हत्याकांड (2022):
उनकी बेंच ने 30 साल से अधिक समय से जेल में बंद दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी, यह मानते हुए कि राज्यपाल ने तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर कोई निर्णय नहीं लिया।
2. वणियार आरक्षण (2022):
तमिलनाडु सरकार द्वारा वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया। जस्टिस गवई की पीठ ने इसे अन्य पिछड़े वर्गों के साथ भेदभावपूर्ण ठहराया।
3. नोटबंदी (2023):
उन्होंने 4:1 के बहुमत से निर्णय देते हुए केंद्र सरकार की नोटबंदी योजना को वैध ठहराया। उनका कहना था कि यह फैसला केंद्र और RBI के परामर्श से हुआ और यह “अनुपातिकता” के मानदंड पर खरा उतरता है।
4. ईडी निदेशक का कार्यकाल (2023):
जुलाई 2023 में उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध ठहराया और 31 जुलाई तक पद छोड़ने का निर्देश दिया।
5. बुलडोजर कार्रवाई पर फैसला (2024):
जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी आरोपी या दोषी की संपत्ति बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त करना असंवैधानिक है। यदि ऐसा होता है, तो संबंधित अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
कार्यकाल और संभावनाएं
न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। इस सीमित अवधि में न्यायपालिका को न्यायिक जवाबदेही, संविधान की रक्षा और सामाजिक न्याय के अहम मसलों पर निर्णायक भूमिका निभानी होगी। उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे संवैधानिक संतुलन, न्यायिक पारदर्शिता और जनता के अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।