ये आवाज़ सिर्फ दीवारों के गिरने की नहीं है… ये उन सपनों की है जो ईद से ठीक एक हफ़्ते पहले मलबे में दबा दिए गए।” बात हो रही है अहमदाबाद के बापूनगर इलाके की, जहां हाल ही में सरकार ने 500 से ज्यादा मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चलवा दिया।
मुस्लिम बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है
सरकार कह रही है कि ये सब ‘तालाब विकास योजना’ के तहत किया जा रहा है। लेकिन जिनके घर टूटे, उनके लिए ये सिर्फ सरकारी योजना नहीं ये ईद से पहले आई एक तबाही है। अहमदाबाद के चंदौली तालाब के बाद अब मलेक साहेबान तालाब और उसके आसपास बसे मुस्लिम बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है।
नोटिस के बाद तोड़ दिए गए घर
लोगों का कहना है कि प्रशासन की तरफ से उन्हें बस नोटिस मिला कोई वक्त नहीं दिया गया और फिर मशीनें आई और हमारे घरों को तोड़ दिया दया. ना ही कोई दूसरे घर की व्यवस्था की गई और ना ही हमें वक्त दिया गया। अब हम अपना गुजारा कैसे करें.
समुदाय को निशाना बनाने की साज़िश?
अब यहां सवाल खड़ा होता है कि क्या विकास के नाम पर सिर्फ एक ही तबके के घर तोड़ना इंसाफ है? अकबरनगर अब सिर्फ एक उजड़ा हुआ मोहल्ला नहीं है… लोगों की सालों की कमाई जमीदोज़ हो जाने का एक मंजर है. और फिर भी कहा जाता है सबका साथ, सबका विकास. पहले प्रशासन ने कहा कि चंदोला तालाब के पास बसे लोग बांग्लादेशी हैं, इसलिए वहां बुलडोज़र चलाना ज़रूरी है। अब वही प्रशासन कह रहा है कि सभी तालाबों का विकास किया जाएगा, इसलिए बापूनगर के मलेक साहेबान तालाब के पास बसे मुस्लिम बहुल इलाकों को हटाया जा रहा है। सवाल उठता है कि क्या ये विकास है या एक खास समुदाय को निशाना बनाने की साज़िश? जिनके घर तोड़े गए, उनका कहना है कि वे सालों से वहीं रह रहे हैं और उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ भी हैं। फिर भी उन्हें उजाड़ा जा रहा है। बता दें कि अहमदाबाद में बुलडोजर की कार्रवाई पहली बार नहीं हुई है. इससे पहले चंदौला तलाब के पास बसे लोगों के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया. इसमें करीब आठ हजार मुसलमानों का नुकसान उठना पड़ा. इससे जुड़ी रिपोर्ट आप हमारे चैनल पर देख सकते हैं.