हालही में बिहार के छपरा में जाकिर और निहाल कुरैशी के साथ लिचिंग की गई. दोनों के ऊपर शक था कि इन्होंने जानवर चुराया है. इस शक के बिनाह पर दोनों को इतना मारा गया कि जाकिर की जान चली गई और निहाल की हालत गंभीर है. इन दोनों भाइयों जैसे कितने ही मामले सामने आते हैं. जैसे मंगलूरू में अशरफ, झारखंड में अब्दुल कलाम. न जाने आ ऐसे और कितने. कई मामले तो दर्ज नहीं किए जाते हैं. जिनका कोई आकड़ा ही मौजूद नहीं है.
लॉब लिंचिंग मानवाधिकार चिंता का विषय
लॉब लिंचिंग एक गंभीर मानवाधिकार चिंता का विषय बन गया है। इन घटनाओं में, मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जाता है. आप लोगों के साथ कुछ स्लाइड शेयर कर रही हूं. जो आपको बताएंगी कि 2015 से लेकर 2025 तक मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की कितनी घटनाएं सामने आ चुकी हैं.









इस डेटा के देखकर पता चलता है कि 2014 के बाद मुसलमानों को खिलाफ लिंचिंग की घनाएं काफी ज्यादा बढ़ गई हैं. मोहम्मद अखलाक, पहलू खान, जुनैद खान और तबरेज़ अंसारी जैसे कुछ मामलों ने मीडिया का ध्यान तो अपनी तरफ खींचा लेकिन ऐसे जुर्म को रोक न सकी.
2014 के बाद बढ़ी लिंचिंग
साल 2014 के बाद से मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग को लेकर कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2014 से 2018 के बीच ऐसी 100 से ज़्यादा घटनाएं हुईं, जिनमें 30 से ज़्यादा मुसलमान मारे गए। गायों से जुड़ी हिंसा में तो और भी ज़्यादा मुसलमान शिकार हुए। 2010 से 2017 के बीच गाय के नाम पर जिन लोगों को मारा गया, उनमें से ज़्यादातर मुसलमान थे, और ये घटनाएं ज़्यादातर 2014 के बाद हुईं।
लिंचिंग का शिकार हुए मुसलमान
अभी हाल ही में, 2024 में भी जो मॉब लिंचिंग हुई, उनमें मरने वालों में ज़्यादा मुसलमान थे। हालाँकि, लिंचिंग के सही आँकड़े मिलना मुश्किल है, क्योंकि हर कोई इसे एक जैसा नहीं गिनता। लेकिन जो भी जानकारी है, उससे यह साफ है कि 2014 के बाद से मुसलमानों को लिंचिंग का बहुत सामना करना पड़ा है, खासकर गायों के नाम पर होने वाली हिंसा में।
दरअसल, इसके पीछे की एक बड़ी वजह है. 2014 से भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक बयानबाजी और हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा ने ऐसा माहौल बनाया है. जो इस तरह की हिंसा के लिए बेनिफिशियल साबित हुआ। इसके बाद हिंदुत्व, राष्ट्रवाद कुछ ऐसे समुह बने जिन्होंने कानून को हाथ में लिया। इससे मुसलमानों के खिलाफ जुल्म बढ़ा.”गौ रक्षा” वाले गाय को बचामे के नाम पर अपने हमले करते हैं। अपनी मर्जी चलाते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। सोशल मीडिया से अफवाहें फैलती हैं और हिंसा भड़कती है। गलत खबरें और वीडियो लोगों को हिंसा के लिए उकसाते हैं। दरअसल, ये सब करना इतना आसान नहीं है इसमें कई चीजों का अहम रोल रहा है जो इस तरह से है.

गौ-आतंकवाद ने अहम रोल निभाया
गाय के नाम पर लिंचिंग बढ़ गई । “गौ रक्षक” लोगों को मारते-पीटते हैं, खासकर बीजेपी वाले राज्यों में। वे गाड़ियों को रोकते हैं, मारते हैं और लोगों से “जय श्री राम” बुलवाते हैं। यह दिखाता है कि कुछ लोग धर्म के नाम पर कैसे डर फैला रहे हैं।
मीडिया का भेदभाव
मीडिया मुसलमानों की लिंचिंग को तवज्जो नहीं देता जितनी दूसरों की। ऐसा लगता है कि मीडिया में मुसलमानों के खिलाफ हो रहे जुल्म को दिखाना ही नहीं चाहता है. हालांकि इस मामले पर
मानवाधिकार संगठन ने क्या कहा
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठन कहते हैं कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत और अपराध बढ़ रहे हैं। वे सरकार से कार्रवाई करने को कहते हैं क्योंकि अपराधियों को अक्सर सजा नहीं मिलती।
सरकार क्या कर रही है
सरकार इन घटनाओं पर ठीक से ध्यान नहीं देती। कई बार तो ऐसा लगता है कि सरकार अपराधियों का ही साथ दे रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिंचिंग रोकने के लिए कानून बनाओ, लेकिन सरकार इस मामले पर कुछ करती हुई दिखाई ही नहीं देती है.
2014 के बाद से मुसलमानों पर बहुत हमले हुए हैं। “गौ-आतंकवाद” और हिंदुत्व की सोच इसमें बड़ी भूमिका निभा रही है। मानवाधिकार संगठन चिंता जता रहे हैं। सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि ऐसी हिंसा रुके और मुसलमानों को सुरक्षा मिले। जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए।