झारखंड के बोकारो जिले के नारायणपुर गांव से एक बार फिर दिल दहला देने वाली मॉब लिंचिंग की घटना सामने आई है। मोहम्मद अब्दुल कलाम, एक मेहनतकश मुस्लिम युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। बताया जा रहा है कि युवक पर एक आदिवासी लड़की से छेड़खानी का आरोप लगाया गया था। लेकिन सवाल उठता है कि क्या आरोप लगते ही भीड़ को किसी की जान लेने का हक मिल जाता है?
कैसे हुई घटना?
घटना 9 मई की है। चंद्रपुरा थाना क्षेत्र के नारायणपुर गांव में रहने वाले मोहम्मद अब्दुल कलाम, जो सेंटरिंग का काम कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था, को भीड़ ने पहले पकड़ा, उसके हाथ बांध दिए और फिर लाठी-डंडों से बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। वीडियो फुटेज में साफ देखा जा सकता है कि वह गिरगिराता रहा, लेकिन किसी को रहम नहीं आया। उस पर थूका गया, गालियां दी गईं और अंततः उसकी मौत हो गई। अब्दुल के पिता पहले ही गुजर चुके थे और वह अपनी बुज़ुर्ग मां का इकलौता सहारा था।
पुलिस के अनुसार, इस घटना में अब तक दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है और जांच जारी है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या भीड़ को कानून से ऊपर माना जा रहा है?
पहले भी हुए हैं ऐसे जघन्य मामले
तबरेज़ अंसारी (2019): चोरी के शक में भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। “जय श्रीराम” के नारे लगाने को मजबूर किया गया।
अलीमुद्दीन अंसारी (2017): गोमांस के शक में भीड़ ने हत्या की, गाड़ी जला दी गई। 11 लोग दोषी ठहराए गए थे, जिनमें एक स्थानीय नेता भी शामिल था।
राजनीति और इंसाफ की मांग
घटना के बाद AIMIM सहित कई राजनीतिक दलों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। AIMIM नेता ने कहा: “ये हत्या सिर्फ एक इंसान की नहीं, बल्कि हमारे संविधान, कानून और इंसानियत की भी हत्या है। अब्दुल कलाम जैसे मेहनतकश नौजवान को भीड़ ने किस हक से मार डाला? क्या अब इन दरिंदों के घर पर बुलडोज़र चलेगा?”