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ओबीसी वोट बैंक पर नजर, सरकार कराएगी जाति जनगणना

नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए घोषणा की है कि आने वाली जनसंख्या गणना के साथ-साथ पूरे देश में जाति जनगणना भी कराई जाएगी. यह फैसला सरकार ने तब लिया है, जब कुछ ही महीनों में बिहार जैसे राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. पहले बीजेपी जाति आधारित जनगणना का विरोध करती थी, लेकिन अब उसने अपना रुख बदल लिया है.   

बदलती परिस्थितियों का नतीजा

इस फैसले को राजनीतिक दबाव और देश की बदलती परिस्थितियों का नतीजा माना जा रहा है. नब्बे के दशक में, बीजेपी ने मंडल आयोग की सिफारिशों का विरोध किया था, जिसमें जाति के आधार पर आरक्षण देने की बात कही गई थी. लेकिन अब, बीजेपी खुद जाति जनगणना करवा रही है, जिससे देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में बड़ा बदलाव आ सकता है. कुछ लोग इसे “मंडल 2.0” कह रहे हैं.   

कांग्रेस ले रही श्रेय 

विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इस फैसले का श्रेय ले रहा है. राहुल गांधी ने कहा कि यह कदम देर से उठाया गया, लेकिन जरूरी था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे उनकी पार्टी की पुरानी मांग बताया। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा कि उनके राज्य में पहले ही जाति सर्वेक्षण हो चुका है, और अब केंद्र सरकार भी इसे अपना रही है.

ओबीसी वोटरों को लुभाने की कोशिश 

इस फैसले के समय को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि बीजेपी ओबीसी वोटों को मजबूत करना चाहती है और जाति आधारित राजनीति को बेअसर करना चाहती है. लेकिन, इससे बीजेपी के पारंपरिक उच्च जाति मतदाताओं को नाराजगी हो सकती है, क्योंकि जाति जनगणना से आरक्षण की मांग बढ़ सकती है. प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को ओबीसी नेता के रूप में स्थापित किया है, और यह कदम उनके लिए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. इस जाति जनगणना से भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है, जैसा मंडल आयोग के समय हुआ था.

भारत में पहले कब हुई जाति जनगणना

भारत में आखिरी बार जातियों की गिनती 1931 में हुई थी.आजादी के बाद, जो भी जनगणना हुई (जैसे 1951 से 2011 तक), उसमें सिर्फ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लोगों को गिना गया। बाकी जातियों की गिनती नहीं हुई.

2011 में कांग्रेस सरकार ने एक जनगणना करवाई थी जिसका नाम था सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC). इसमें लोगों की जाति के बारे में भी जानकारी ली गई थी. लेकिन, इस जनगणना के जाति वाले आंकड़े कभी लोगों को नहीं बताए गए. इसलिए, अगर सही-सही देखें तो जातियों के आधार पर लोगों की गिनती आखिरी बार 1931 में ही हुई थी.

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