सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को कोटा में छात्रों के लगातार बढ़ रहे आत्महत्या के मामलों को ठीक से न संभालने के लिए कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने इस हालत को बहुत गंभीर बताया है और चिंता जताई है कि इस साल पहले ही कोटा में 14 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। सुनवाई के दौरान जस्टिस पारदीवाला ने राजस्थान सरकार से पूछा कि वे इस बारे में क्या कर रहे हैं और यह भी पूछा कि बच्चे सिर्फ कोटा में ही क्यों आत्महत्या कर रहे हैं, क्या सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
राजस्थान सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि इन आत्महत्याओं की जांच के लिए एक स्पेशल टीम (एसआईटी) बनाई गई है। लेकिन कोर्ट इस जवाब से संतुष्ट नहीं दिखा। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने में देरी हो रही है या कई बार तो एफआईआर दर्ज ही नहीं की जा रही है, जो कि जांच का बुनियादी काम है।
कोर्ट ने दो खास मामलों पर बात की। पहला मामला आईआईटी खड़गपुर के 22 साल के छात्र का था, जो 4 मई को अपने हॉस्टल के कमरे में लटका हुआ मिला था और जिसकी एफआईआर 8 मई को दर्ज हुई, यानी चार दिन बाद। दूसरा मामला कोटा की एक नीट की तैयारी कर रही छात्रा का था, जो नवंबर 2024 में कोचिंग संस्थान का आवास छोड़ने के बाद अपने माता-पिता के साथ रह रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी खड़गपुर के मामले में एफआईआर में हुई देरी और कोटा के मामले में एफआईआर दर्ज न करने पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने अपने 24 मार्च के फैसले का हवाला दिया, जिसमें उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की आत्महत्याओं पर तुरंत ध्यान देने की बात कही गई थी और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक राष्ट्रीय कार्यबल बनाने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि कोटा में नीट की छात्रा भले ही कोचिंग के आवास में नहीं रह रही थी, फिर भी स्थानीय पुलिस का कर्तव्य था कि वह कार्रवाई करे और एफआईआर दर्ज करे। कोर्ट ने कहा कि संबंधित पुलिस अधिकारी ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया है और कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने उस जिम्मेदार अधिकारी को 14 जुलाई को कोर्ट में पेश होकर अपनी लापरवाही का कारण बताने का आदेश दिया है।