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गुरुग्राम में बंगाली मुस्लिम मजदूरों पर कार्रवाई से मचा हड़कंप, सैकड़ों परिवार डर से कर रहे पलायन

 गुरुग्राम, हरियाणा भारत की चमकता हुआ IT हब, ऊंची इमारतें, मॉल्स और मेट्रो के पीछे छिपा एक कड़वा सच। एक ऐसा सच जिसे न न्यूज़ चैनलों पर जगह मिल रही है, न नेताओं की भाषणों में। यहां आजकल कुछ लोग डर के मारे अपना सामान समेटकर चुपचाप वापस लौट रहे हैं  अपने गांव, अपने राज्य। ये कोई विदेशी नहीं हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने इस शहर को बनाया है  ईंट, सीमेंट, पसीना और मेहनत से। और अब इन्हें ही यहां से बेदखल किया जा रहा है… सिर्फ़ इसलिए क्योंकि ये बंगाली बोलते हैं और मुसलमान हैं।

पिछले कुछ हफ्तों में गुरुग्राम में एक अजीब और डरावना अभियान चलाया गया। पुलिस ने शहर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर मजदूरों को बिना कोई नोटिस, बिना कोई गिरफ्तारी मेमो दिए हिरासत में लेना शुरू किया। सेक्टर 10A, सेक्टर 40, बादशाहपुर और मानेसर जैसे इलाकों में सामुदायिक हॉलों को अस्थायी डिटेंशन सेंटर बना दिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 200 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया  और इनमें से ज़्यादातर बंगाली मुसलमान थे। ये वो लोग हैं जो वर्षों से गुरुग्राम में रह रहे हैं  कोई 10 साल से, कोई 20 साल से। कोई घरों में सफाई करता है, कोई ड्राइवर है, कोई कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करता है। लेकिन अचानक, उन्हें “अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिया” कह कर उठाया जाने लगा।

शक्करपुर गांव से 13 लोगों को एक साथ उठाया गया। उनमें से एक मजदूर ने बताया  “हमें कुछ नहीं बताया गया। फोन छीन लिए गए, बंद कर दिए गए। किसी को अपने घर तक फोन करने नहीं दिया गया। हमें पुलिस पोस्ट से घुमा-घुमाकर सेक्टर 31 के एक सामुदायिक हॉल में ले जाया गया और वहां तीन दिन तक बंद रखा गया।” एक और मज़दूर ने बताया कि जब उन्होंने खाने की मांग की तो पुलिसकर्मी ने जवाब दिया  “तुम लोग रोज़ा तो रखते नहीं, तुम्हें खाने की क्या पड़ी है?” उन्हें जो खाना मिला वो बासी था, बदबूदार था। और अगर किसी ने विरोध किया तो उन्हें मारा भी गया।

यह अभियान जिस तर्क पर आधारित था  ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों को ढूंढना’  वो पूरी तरह से धराशायी हो गया। रिपोर्ट्स बताती हैं कि 200 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया, लेकिन उनमें से सिर्फ़ 10 लोग ही ऐसे पाए गए जिन पर संदेह सही साबित हुआ। बाकियों को या तो छोड़ दिया गया या “सत्यापन लंबित” कहकर रखा गया।

लेकिन डर सिर्फ हिरासत में लिए गए लोगों तक सीमित नहीं रहा। आसपास के बस्तियों में खबर फैलते ही सैकड़ों परिवार अपना सामान समेटकर गुरुग्राम छोड़ने लगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 400 से ज़्यादा परिवार अब तक अपने गांव लौट चुके हैं। कुछ रिपोर्ट्स में ये आंकड़ा 700 मजदूरों तक भी पहुंचता है जो अब पश्चिम बंगाल में अपने घर लौट चुके हैं, लेकिन सदमे में हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पूरे अभियान को “linguistic terrorism” कहा। उन्होंने गुरुग्राम प्रशासन से तुरंत जवाब मांगा और कहा कि जिन लोगों को उठाया गया है, उनमें कई के पास Aadhaar, PAN, वोटर ID जैसे सभी वैध दस्तावेज थे। उन्होंने यह भी कहा कि ये लोग भारत के नागरिक हैं, बांग्लादेशी नहीं।

सिविल राइट्स ग्रुप्स जैसे APCR और वकील हज़ैफा अहमद ने भी इस अभियान को असंवैधानिक और जातीय पहचान के आधार पर की गई कार्रवाई कहा। उनका कहना था  “ये शहर उन्हीं मजदूरों ने बनाया है। लेकिन आज उन्हीं को ‘घुसपैठिया’ कहकर निकाला जा रहा है। ये लोगों को Stateless feel कराना है  अपने ही देश में बेगाना बना देना।”

अब सवाल ये उठता है — क्या ये सब बिना किसी लिखित आदेश, SOP या प्रक्रिया के हो रहा है? CPI-ML नेता Dipankar Bhattacharya ने इसे “गैरकानूनी हिरासत” कहा। उन्होंने सवाल उठाया कि क्यों किसी भी सरकारी वेबसाइट या पुलिस रिपोर्ट में इस अभियान का कोई उल्लेख नहीं है?

APCR और अन्य संगठनों ने कुछ अहम मांगें रखी हैं:

  • एक स्वतंत्र न्यायिक जांच
  • हिरासत में लिए गए सभी लोगों की तुरंत रिहाई
  • ज़िम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई
  • और सबसे ज़रूरी  जनता के सामने स्पष्ट किया जाए कि ये अभियान किस कानून के तहत चलाया जा रहा है।

इस अभियान का असर अब साफ दिखने लगे हैं। गुरुग्राम में सफाई और रैगपिकिंग का काम करने वाले बहुत से मजदूर अब लौट चुके हैं। नतीजा  शहर में कचरा इकट्ठा हो रहा है, और नगर निगम की रिपोर्ट्स में इसकी पुष्टि हुई है। कंपनियां भी अब चिंता जता रही हैं कि उनकी फैक्ट्रियों में मजदूरों की भारी कमी हो गई है। ये सिर्फ प्रवासी मजदूरों का मामला नहीं है  ये भारत के संविधान, नागरिकता की परिभाषा, और हमारी बहुभाषी-बहुधर्मी समाज की पहचान का मामला है।
क्या कोई इंसान अपने नाम, अपनी भाषा या अपने धर्म की वजह से संदेह के घेरे में आ सकता है…?  क्या Aadhaar कार्ड, वोटर ID, राशन कार्ड भी अब किसी की नागरिकता साबित नहीं कर सकते?  क्या एक मजदूर जो सालों से एक शहर में रह रहा हो, उसी को एक दिन बिना वजह “घुसपैठिया” कहकर उठा लिया जाएगा?

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