2027 के विधानसभा चुनावों से पहले दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिशों को तेज़ करते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उत्तर प्रदेश में एक नई और विस्तृत दलित आउटरीच मुहिम शुरू कर दी है। इस मुहिम के तहत पार्टी राज्यभर के 6,000 प्रभावशाली अनुसूचित जाति (SC) व्यक्तियों से सीधा संवाद करेगी।
इस अभियान की कमान पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा (SC Morcha) को दी गई है, जो प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के साथ समन्वय बनाकर इसे आगे बढ़ाएगा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़, यह प्रयास यूपी के सभी छह संगठनात्मक क्षेत्रों — काशी, गोरखपुर, अवध, कानपुर, ब्रज और पश्चिमी उत्तर प्रदेश — में चलाया जाएगा।
‘चुनाव नहीं, भरोसा जीतना मकसद’
बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राम चंद्र कन्नौजिया ने कहा, “हम दलित समाज के प्रभावशाली वर्गों से व्यापक फीडबैक लेंगे और जहाँ ज़रूरत होगी, वहाँ सुधारात्मक कदम भी उठाएंगे।” इस संवाद का लक्ष्य रिटायर्ड नौकरशाहों, शिक्षकों, धार्मिक नेताओं, समाजसेवियों और पेशेवर लोगों से जुड़ना है — खासकर जाटव, पासी, कोरी और धोबी जैसी प्रमुख उपजातियों से। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “मकसद सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि भरोसा जीतना है। हमारी पार्टी ‘सबका साथ, सबका विकास’ में विश्वास करती है और हम इसे जमीनी स्तर पर सिद्ध करने में लगे हैं।”
सेवा, सम्मान और संवाद के जरिए नया संदेश
इस अभियान के तहत बीजेपी सम्मान समारोह और सेवा-आधारित कार्यक्रम आयोजित करेगी, जिनमें सरकार की योजनाओं और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर खुली चर्चा होगी। यह कार्यक्रम विशेष रूप से दलित बहुल इलाकों में रखे जाएंगे।
दलितों की राजनीतिक भागीदारी को मज़बूती देने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह रणनीति बताती है कि बीजेपी दलित वोट बैंक की अहमियत को न सिर्फ़ समझती है, बल्कि उसे समय रहते साधने की पहल भी कर रही है। यूपी की 21% से अधिक आबादी दलित समुदाय की है, और इस वर्ग के प्रभावशाली लोगों से संपर्क कर पार्टी बहिष्करण की धारणा को बदलने और समावेशन का संदेश देने की कोशिश कर रही है।
भीतरखाने संवाद पहले ही शुरू
ग़ौरतलब है कि बीजेपी ने इस महीने की शुरुआत में ही ज़िला स्तर पर ‘संवाद’ कार्यक्रम शुरू किया था, जिसकी अगुवाई राज्य के संगठन महासचिव धर्मपाल सिंह कर रहे हैं। इन बैठकों का मकसद था — दलित कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना और आगामी चुनावी चुनौतियों के लिए तैयार करना।
चुनावी प्रतिस्पर्धा तेज़, रणनीति पहले से धारदार
यह पहल उस वक़्त शुरू हुई है जब बीजेपी को समाजवादी पार्टी–कांग्रेस गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है — दोनों ही दलों को परंपरागत रूप से दलित समर्थन मिलता रहा है। ऐसे में बीजेपी का यह प्रारंभिक कदम, न सिर्फ़ मुकाबले को संतुलित कर सकता है, बल्कि दलित समाज में अपनी स्वीकार्यता भी बढ़ा सकता है।