उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के चिन्तामणि गढ़िया गांव में एक अनोखा और भावनात्मक फैसला देखने को मिला। यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने खुद अपनी मस्जिद तोड़नी शुरू कर दी, ताकि इलाके में कोई टकराव या हिंसा न हो।जिस मस्जिद को खुद लोगों ने तोड़ा, वो गढ़िया मस्जिद के नाम से जानी जाती थी। ये मस्जिद और पास का ईदगाह सरकारी ज़मीन (गाटा संख्या 645 और 648) पर बना था। हिंदुत्व संगठनों जैसे सनातनी सेना ने इसे “अवैध निर्माण” बताकर प्रशासन से शिकायत की थी।
इसके बाद प्रशासन ने राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत नोटिस भेजा और मार्च 2025 में मस्जिद पर अंतिम चेतावनी चिपका दी गई – अगर खुद नहीं हटाया गया, तो बुलडोजर से तोड़ा जाएगा।मस्जिद कमेटी ने ADM कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में राहत की गुहार लगाई, लेकिन कहीं से भी राहत नहीं मिली।ADM ने पहले कहा था कि तहसीलदार 6 महीने में फैसला लें, लेकिन सिर्फ 3 महीने में ही कार्रवाई तेज़ कर दी गई।
बढ़ते दबाव और डर के बीच, गांव के मुसलमानों ने हथौड़े और औज़ार लेकर खुद मस्जिद गिरानी शुरू कर दी।मस्जिद कमेटी के सदस्यों ने कहा, “हम नहीं चाहते कि ये जगह नफरत का केंद्र बने। अमन और भाईचारा ज़्यादा ज़रूरी है।”इस घटना की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है। कई लोग इसे शांति और समझदारी की मिसाल बता रहे हैं, तो कुछ इसे मजबूरी में लिया गया फैसला कह रहे हैं।
अब सवाल ये उठता है —
क्या वाकई धार्मिक स्थलों की रक्षा अब सिर्फ अदालती कागज़ों पर रह गई है?
और क्या एकतरफा कार्रवाई से देश में सांप्रदायिक संतुलन बिगड़ता नहीं?