श्रावण का महीना… और भगवान शिव के लाखों भक्तों की आस्था से सजी कांवड़ यात्रा। लेकिन इस साल कांवड़ यात्रा के साथ एक और चीज़ वायरल हो रही है QR कोड! सरकार कहती है ये ‘सुरक्षा’ के लिए है… लेकिन बहुत से लोग पूछ रहे हैं क्या ये भक्ति है या पहचान की राजनीति?
कांवड़ यात्रा उत्तर भारत की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है। शिव भक्त दूर-दराज से पैदल चलकर गंगा जल लाते हैं और उसे अपने नज़दीकी मंदिरों में चढ़ाते हैं। ये यात्रा मेरठ, मुज़फ्फरनगर, हरिद्वार, और बनारस जैसे शहरों से होकर निकलती है।इस बार यात्रा में 4 करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद है जिसके लिए यूपी सरकार ने जबरदस्त सुरक्षा तैनात की है 50 हज़ार से ज़्यादा जवान, 29 हज़ार CCTV और ड्रोन कंट्रोल रूम तक।
इस बार सरकार ने एक नया आदेश जारी किया है कांवड़ यात्रा मार्ग पर हर खाने की दुकान पर QR कोड लगाना जरूरी है। इस कोड को स्कैन करते ही सामने आता है दुकानदार का नाम, पता, और रजिस्ट्रेशन डिटेल्स। अधिकारियों का कहना है कि इससे साफ-सफाई, पारदर्शिता और सुरक्षा बनी रहेगी। लेकिन दुकानदार कह रहे हैं ये तो पिछली साल के ‘नाम-पट्टी’ आदेश का नया रूप है जिसमें दुकानदारों को अपना नाम बाहर चिपकाना पड़ा था और ज़्यादातर निशाना मुस्लिम दुकानदार बने थे।2024 में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था दुकानदारों को मजबूर नहीं किया जा सकता कि वे अपनी धार्मिक पहचान सार्वजनिक करें।
लेकिन इस साल फिर वही घटनाएं दोहराई जा रही हैं। मुज़फ्फरनगर, मेरठ, और बिजनौर में रिपोर्ट्स सामने आई हैं जहां कुछ हिंदू संगठन दुकानों के QR कोड स्कैन कर रहे हैं, और ‘हिंदू-फ्रेंडली’ स्टॉल्स पर भगवा झंडे चिपका रहे हैं। स्वामी यशवीर महाराज के समर्थकों पर आरोप है कि उन्होंने दुकानदारों की पहचान जबरदस्ती जानने की कोशिश की एक मामले में तो एक युवक को कपड़े तक उतारने को मजबूर किया गया। दूसरी ओर दिल्ली सरकार ने कांवड़ मार्गों पर मीट की दुकानें बंद करने का फैसला लिया। MCD ने कहा ‘हमारे पास ऐसा कोई कानून नहीं है, लेकिन स्वेच्छा से दुकानदार दुकानें बंद रखते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कई जगहों पर सड़कें पूरी तरह से ठप हो गई हैं। दिल्ली, मेरठ, हरिद्वार सब जगह जाम की स्थिति है। कई जगहों पर एम्बुलेंस और आम लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई वायरल वीडियो में देखा गया कि कांवड़ियों ने दुकानों में तोड़फोड़ की, लोगों से मारपीट की। क्या ये भक्ति है? या आस्था के नाम पर अराजकता?”
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार से सवाल पूछा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है? कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा – ‘रोजगार के लिए QR कोड क्यों नहीं लगाया जाता? सिर्फ दुकान और धर्म क्यों?’वहीं बीजेपी का कहना है ‘श्रद्धालु ये जानने का अधिकार रखते हैं कि उनका खाना कौन बना रहा है। ये हिंदू गौरव की बात है।लेकिन सवाल ये है जब किसी को उसके धर्म के आधार पर पहचाना जाए तो… क्या वो संविधान की भावना है? कांवड़ यात्रा आस्था की यात्रा है – लेकिन अगर इसी यात्रा में डर, धमकी और पहचान पूछने का ट्रेंड आ जाए – तो क्या ये ‘हर हर महादेव’ का अपमान नहीं है? देश में किसी को भी उसकी जाति या धर्म के आधार पर डराया नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश हो या इंसानियत की बुनियादी बात दोनों यही कहते हैं भक्ति का रास्ता प्यार से होता है, नफरत से नहीं।